Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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__ - श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
लगे तथा उसके वर्णादिक पलट गये हों तब उसे अचित्त समझना चाहिये । ऐसे अचित्त हुए पानी को लेने में कोई दोष नहीं है।
' (पिण्डनियुक्ति गा० १८-२१) (कल्पसूत्र) (वृहत्कल्प)
(आचाराग सूत्र श्रु. २ अ १ उ. ७-८ ४१, ४३) उपरोक्त तीनों प्रकार का पानी यदि अहुणाधोयं (जो तत्काल धोया हुआहो), अणंबिल (जिसका स्वाद न बदला हो), अव्वुक्कन्तं (जो पूर्ण रूप से व्युत्क्रान्त न हुआहो अर्थात् जिसकारंग और रूपन बदल गया हो), अपरिणयं (जो अवस्थान्तर में परिणत न हो गया हो), अविद्धत्थं (शस्त्र परिणत होकर जो पूर्णरूप से अचित्त न हो गया हो), अफासुयं (जोपासुकयानी अचित्त न हुआ हो) तो साधु को लेना नहीं कल्पता किन्तु चिर काल का धोया हुआ, अन्य स्वाद में परिणत, अन्य रंग रूप में परिवर्तित, अवस्थान्तर में परिणत और प्रासुक धोवन लेना साधु को कल्पता है। . दशवैकालिक सूत्र पांचवें अध्ययन के पहले उद्देशे में कहातहेवच्चावयं पाणं, अदुवा वारधोत्रणं । संसेइमं चाउलोदगं, अहुणा धोअं विवज्जए॥ जं जालेज्ज चिराधोयं, मईए दमणेणवा। पडिपुच्छिऊप सुच्चावा. जं चनिस्सकिनं भवे॥
अर्थात्-उच्च (सुस्वादु, द्राक्षादि का पानी), अवच (दुस्वादु, कांजी आदि का पानी) अथवा-घड़े आदि के धोवन का पानी, कठोती के धोवन का पानी, चॉबलों के धोवन का पानी तत्काल का हो तो मुनि ग्रहण न करे। । यदि अपनी बुद्धि से या प्रत्यक्ष देख कर तथा दाता से पूछ कर या सुन कर जाने कि यह जल चिरकाल वा थोया हुआ है और वह शंका रहित हो तो मुनि को वह धोव । ग्रहण करना कल्पता है।
. (दशवैकालिक अध्ययन ३ उद्देशा १ गाथा ७५-७६)