Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
ने उन्हीं कपड़ों को पहन लिया और वैसा ही शृङ्गार कर लिया। इसके बाद प्रतीक्षा में बैठे हुए अपने पति के पास चली गई ।
दूसरे दिन श्रावक को बहुत पश्चात्ताप हुआ । उसने सोचा मैंने अपना लिया हुआ व्रत खण्डित कर दिया । मैंने बहुत बुरा किया | इस प्रकार पश्चात्ताप करने से श्रावक फिर दुर्बल होने लगा। उसकी स्त्री ने इस बात को जानकर सच्ची सवी बात कह दी | इसे सुनकर श्रावक बहुत प्रसन्न हुआ । गुरु के पास जाकर मानसिक कुविचार और परस्त्री के संकल्प से विषय सेवन के लिये प्रायश्चित्त लेकर वह शुद्ध हुआ ।
उस श्रावक पत्नी ने अपने पति का व्रत और प्राण दोनों की रक्षा कर ली । यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी ।
( नन्दी सूत्र ) (E) अमात्य (मन्त्री) - कम्मिलपुर में ब्रह्म नाम का राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम चुननी था । एक समय सुखशय्या पर सोती हुई रानी ने चक्रवर्ती के जन्म सूचक चौदह महाम्यम देखे | जिनके परिणाम स्वरूप उसने एक परम प्रतापी पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम ब्रह्मदत्त रखा गया। जब वह चालक था उसी समय ब्रह्म राजा का देहान्त हो गया । ब्रह्मदत्त कुमार छोटा था इसलिये राज्य का कार्य ब्रह्मराजा के मित्र दीर्घपृष्ठ को मांगा गया। दीर्घपृष्ठ बड़ी योग्यता पूर्वक राज्य का कार्य सम्भालने लगा । वह निःशंक होकर अन्तःपुर में श्राता जाता था । कुछ समय पश्चात् रानी चुलनी के साथ उसका प्रेम हो गया । वे दोनों विषय सुख का भोग करते हुए आनन्द पूर्वक समय विताने लगे ।
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न राजा के मन्त्री का नाम धनु था । वह राजा का परम हितैषी था। राजा की मृत्यु के पश्चाद हर प्रकार से ब्रह्मदच