Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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७२ : ..श्री सेठिया-जेन अन्यमाला 'अशक्य है। कान गर्दन का ऊपरी भाग, मस्तक, पीठ आदि अपने अंगों को देखना संभव नहीं है।
(८) आवरण आने से भी विद्यमान पदार्थ नहीं जाने जा सकते। हाथ से आँख ढक देने पर कोई भी पदार्थ दिखाई नहीं देता, दिवाल पर्दै श्रादि के प्रावरण से भी पदार्थ नहीं जाने जाते।
(8) कई पदार्थ ऐसे हैं जो दूसरे पदार्थों द्वारा अभिभूत हो जाते हैं, इस लिए वे नहीं देखे जा सकते। सूर्य-किरणों के तेज से दबे हुए तारे आकाश में रहते हुए भी दिन में दिखाई नहीं देते।
(१०) समान जाति होने से भी पदार्थ नहीं जाना जाता जैसे अच्छी तरह से देखे हुए भी उड़द के दानों को उड़द राशि में मिला देने पर उन्हें वापिस पहिचानना सम्भव नहीं है ।
(११) उपयोग न होने से भी विद्यमान पदार्थों का ज्ञान नहीं होता। रूप में उपयोगवाले पुरुष को दूसरी इन्द्रियों के विषयों का उपयोग नहीं होता और इसलिये उसे उनका ज्ञान नहीं होता। निन्द्रितावस्था में शय्या के स्पर्श का ज्ञान नहीं होता। - (१२) उचित उपाय के न होने से भी पदार्थों का ज्ञान नहीं होता। जैसे सींगों से गाय भैंस के दूध का परिमाण जानने की इच्छा वाला पुरुष दूध के परिमाण को नहीं जान सकता क्योंकि दूध जानने का उपाय सींग नहीं है। जैसे आकाश का माप नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका कोई उपाय नहीं है।
(१३) विस्मरण अर्थात् भूल जाने से भी पहले जाने हुऐ पदार्थों का ज्ञान नहीं होता।
(१४) दुरागम अर्थात् गलत उपदेश से भी पदार्थ का वास्तविक ज्ञान नहीं होता । जिस व्यक्ति को पीतल को सोना बताकर गलत समझा दि.. गया है उसे असली सोने का ज्ञान नहीं होता। . (१५) मोह भी पदार्थ वास्तविक ज्ञान नहीं होता।