Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग (४) तिलोदग-तिलों को धोकर या अन्य किसी प्रकार से अचित्त किया हुआ पानी तिलोदग कहलाता है। (५) तुसोदग-तुपों का पानी। (६) जवोदग-जौ का पानी। (७) आयाम-चांवल आदि का पानी। (८) सौवीर-आछ अर्थात् छाछ पर से उतारा हुआ पानी । (8) सुद्धवियड-गर्म किया हुआ पानी ।
उपरोक्त पानी को पहले अच्छी तरह देख लेना चाहिए। इस के बाद उसके स्वामी से पूछना चाहिये कि हे आयुष्मन् ! मुझे पानी की जरूरत है, क्या आप मुझे यह पानी देंगे? ऐसा पूछने पर यदि गृहस्थ वह पानी दे तो साधु को लेना कल्पता है। यदि गृहस्थ ऐसा कहे कि भगवन् ! आप स्वयं ले लीजिये, तो साधु को वह पानी स्वयं अपने हाथ से लेना भी कल्पता है। __ यदि उपरोक्क धोवन सचित्त पृथ्वी पर पड़ा हो अथवा दाता सचित्त पानी या मिट्टी से खरड़े हुए हाथों से देने लगे अथवा अचित्त धोवन में थोड़ा थोड़ा सवित्त पानी मिला कर दे तो ऐसा पानी लेना साधु को नहीं कल्पता है ।
(१०) अम्पपाणग-अाम का पानी, जिसमें ग्राम धोये हों।
(११) अंबाडगपाणग-अंबाडक (आनातक) एक प्रकार का वृक्ष होता है उसके फलों का धोया हुआ पानी ।
(१२) कविठ्ठपाणग-कविठ का धोया हुआ पानी । (१३) माउलिंगपाणग-विजौरे के फलों का धोया हुआ पाती। (१४) मुदियापाणग-दालों का धोया हुआ पानी । (१५) दालिमपाणग-अनारों का धोया हुआ पानी ।
(१६) खजूरपाणग-खजूरों का धोया हुआ पानी । - (१७) नालियेरपाणग-नारियलों का धोया हुआ पानी ।