Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
View full book text
________________
श्री जैन सिद्धान्त बाल संग्रह, छठा भाग
सेनापति अपने पाँच सौ चोरों को साथ लेकर पु रमताल नगर में आया राजाने अभग्गसेन का बहुत आदर सत्कार कर कूटागार शाला में ठहराया और उसके खाने पीने के लिए बहुंत सी भोजन सामग्री और मदिरा आदि भेजे । उनका आहार कर नशे में उन्मत्त होकर वह वहीं सो गया । राजा ने अपने नौकरों को आज्ञा दी कि नगर के सारे दरवाजे बन्द कर दो और अभागसेन को पकड़ कर मेरे सामने उपस्थित करो। नौकरों ने ऐसा ही किया। अभागसेन चोर सेनापति को जीवित पकड़ कर वे राजा के पास ले आये।
भगवान् फरमाने लगे कि हे गौतम ! जिस पुरुष को तुम देख आये हो वह अभग्गसेन चोर सेनापति है। राजा ने उसे इस प्रकार दण्ड दिया है। आज तीसरे पहर शूली पर चढ़ाया जाकर मृत्युको प्राप्त करेगा । यहाँका ३७ वर्प का आयुष्य पूर्ण करके रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होगा। इसके पश्चात् मृगापुत्र की तरह अनेक भव भ्रगण कर बनारसी नगरी में शूकर (सूअर) रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ शिकारी उसे मार देंगे। मर कर बनारस में ही एक सेठ के घर जन्म लेगा ।यौवन वय को प्राप्त होकर दीक्षा ग्रहण करेगा। कई वर्षों तक संयम का पालन कर पहले देवलोक में जायगा। वहाँ से चब कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। फिर दीक्षा अङ्गीकार करेगा और कर्मा का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध यावत् मुक्त होकर सब दुःखों का अन्त करेगा।
(४) शकट कुमार की कथा
प्राचीन समय में सोहज्जनी नाम की एक अति रमणीय नगरी थी । वहाँ महाचन्द नाम का राजा राज्य करता था। वह साम, दाम, दण्ड, भेद आदि राजनीति में बड़ा ही चतुर था । उसी नगर में सुदर्शना नामक एक गणिका भी रहती थी । वह गणिका के सब गुणों से युक्त थी। वहीं सुभद्र नाम का एक सार्थ