Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
राजा की आज्ञा पाकर प्रधान ने शकट कुमार और गणिका को बंधवा कर मारने की आज्ञा दी।
भगवान् ने फरमाया हेगौतम! तुमने जिस स्त्री पुरुष को देखा, वह शकट कुमार और सुदर्शना वेश्या है। आज त सर पर लोहे की गरम की हुई एक पुतली के साथ उन दोनों को चिपटायाजायगा। वे अपने पूर्वकृत कर्मों के फल भोग रहे हैं । मर कर वे पहली नरक में उत्पन्न होंगे। वहाँ से निकल कर वेदोनों चाण्डाल कुल में पुत्र और पुत्री रूप से युगल उत्पन्न होंगे। यौवन वय को प्राप्त होने पर शकट कुमार का जीव अपनी बहिन के रूप लावण्य में आसक्त बन कर उसी के साथ काम भोगों में प्रवृत्त हो जायगा।पापकर्म का
आचरण कर पहली नरक में उत्पन्न होगा। इसके बाद मृगापुत्र की तरह अनेक नरक तिर्यश्च के भव करके अन्त में मच्छ होगा। वह धीवर के हाथ से माराजायगा। फिर बनारसी नगरी में एक सेठ के घर जन्मलेकर दीक्षा लेगा। आयु समाप्त होने पर सौधर्म देवलोक में देव होगा। वहाँसे चव कर महा वदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। दीक्षालेकर सकल कर्मों का क्षय कर सिद्ध, युद्ध यावत् मुक्त होगा।
(५) बृहस्पतिदत्त कुमार की कथा
कौशाम्बी नगरी में शतानीक राजाराज्य करता था। उसकी रानी का नाम मृगावती और पुत्र का नाम उदायन था । उसके पुरोहित का नाम सोमदत्त था । वह चारों वेदों का ज्ञाता था। उसके वसुदत्ता नाम की स्त्री और वृहस्पतिदन नाम का पुत्र था।
एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँपधारे।गौतम स्वामी भिक्षार्थनगर में पधारे। मार्ग में उज्झितकुमार की तरह राज. पुरुषों से घिरे हुए एक पुरुष को देखा भगवान् के पास आकर गौतम स्वामी ने उसके पूर्वभव का वृत्तान्त पूछा। भगवान् फरमाने लगे--