Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह, छठा भाग
५७
हुआ धर्मध्यान में तल्लीन था। उनके हृदय में विचार उत्पन्न हुआ कि जो राजकुमार आदि भगवान् के पास दीक्षा लेते हैं वे धन्य हैं। अब यदि भगवान् इस नगर में पधारें तो मैं भी उनके समीप मुरडत होकर दीक्षा धारण करूँगा। - सुबाहु कुमार के उपरोक्त अध्यवसाय को जान कर भगवान् हस्तिशीष नगर में पधारे। भगवान् के आगमन को सुनकर जनता दर्शनार्थ गई । सुवाहु कुमार भी गया । धर्मोपदेश सुन कर जनता तो वापिस लौट आई । सुबाहु कुमार ने भगवान् से अर्ज की कि मैं माता पिता की आज्ञा प्राप्त कर आपके पास दीक्षा लेना चाहता हूँ। घर आकर माता पिता के सामने अपने विचार प्रकट किये। माता पिता ने संयम की अनेक कठिनाइयाँ वतलाई किन्तु सुबाहु कुमार ने उनका यथोचित् उत्तर देकर माता पिता से आज्ञा प्राप्त कर ली। राजा अदीनशत्रु ने बड़े ठाठ से दीक्षामहोत्सव किया । भगवान् के पास संयम लेकर सुबाहु कुमार अनगार ने ग्यारह अङ्ग पढ़े
और उपवास, वेला, तेला आदि अनेक विध तपस्या करते हुए संयम मैं रत रहने लगा। बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन कर अन्तिम समय में एक महीने की संलेखना संथारा कर यथा समय काल कर के सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ।
सौधर्म देवलोक से चव कर सुवाहु कुमार का जीव मनुष्यभव करेगा। वहाँ दीक्षा लेकरयावत् संथारा कर तीसरे देवलोक में उत्पन्न होगा। तीमरे देवलं क से चत्र कर पुनः मनुष्य का भव करेगा एवं श्रायु पूरी कर पाँचवें ब्रह्मल क देवलोक में उत्पन्न होगा। उस देवलोककी स्थिति पूरी कर मनुष्यगत में जन्मलेगा।वहाँ से कार कर सातवें महाशक दवलाक में उत्पन्न होगा। महा. क्र देवलोक की स्थिति पू.। कर पुनः मनुष्य भव में जन्म लेगा पार आयु पूरी. होने पर या त देवलोक में जायगा आ । देवलोक को