Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग
१५
(१४) साधु साध्वी को पूर्व प्रतिज्ञेखित शय्या सस्तारक के सिवाय और कोई चीज रात्रि में लेना नहीं कल्पता है। पू'प्रतिलेखित शय्या संस्तारक का रात्रि में लेना भी उत्सर्ग मार्ग से निषिद्ध है । अपवाद मार्ग से यह कल्प बताया गया है ।
(१५) रात्रि में पूर्व प्रतिलेखित शय्या संस्तारक लेने का कल्प बताया हैं। इससे कोई यह न समझ ले कि पूर्व प्रतिलेखित शय्या संस्तारक आहार नहीं है । इसलिये ये दिये जा सकते हैं । इसी प्रकार पूर्व प्रतिज्ञेखित वस्त्रादि लेने में कोई दोष न होना चाहिए। इसलिये सूत्रकार स्पष्ट कहते हैं कि साधु साध्वियों को रात्रि अथवा चिकाल में वस्त्र, पात्र, कम्बल, झोली, पात्र पूंछने का वस्त्र या पूंजनी एवं रजोहरण लेना नहीं कल्पता है। आहार की तरह इन्हें रात्रि में लेने से भी पाँचों महाव्रतों का दूषित होना संभव है ।
(१६) ऊपर रात्रि में वस्त्र लेने का निषेध किया है परन्तु उसका एक अपवाद है | यदि वस्त्र को चोरों ने चुरा लिया हो एव वापिस लाये हों तो वह वस्त्र लिया जा सकता है। चाहे उसे उन्होंने पहना हो, धोया हो, रगा हो, घिसा हो, कोमल बनाया हो या धूप दिया हो ।
(१७) रात्री अथवा विकाल में साधु साध्वियों को विहार करना नहीं कल्पता है । रात्रि में विहार करने वाले के संयम आत्मा और प्रवचन विषयक अनेक उपद्रव होते हैं।
(१८ साधु साध्वियों को सखडी (विवाहादि निमित्त दिये गये भोन के उद्देश्य से जहाँ संखडी हो वहाँ जाना नहीं कल्पता है ।
(१६) रात्रि अथवा विकाल के समय साधु को विचार भूमि (जंगल) या विहार भूमि ( स्वाध्याय की जगह) के उद्देश्य से अकेले उपाश्रय से बाहर निकलना नहीं कल्पता है । उसे एक अथवा दो साधुओं के साथ बाहर निकलना चाहिए। साध्वी को इस तरह विचार भूमि या विहार भूमि के उद्देश्य से उपाश्रय से बाहर जाना