Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ' हुआ। वहाँ से निकल कर मृगावती रानी की कुक्षि में आया। गर्भ में आते ही रानी को अशुभ सूचक स्वप्न आया । रानी राजा को अप्रिय लगने लगी। तब रानी ने उस गर्भ को सड़ाने, गलाने और गिराने के लिये बहुत कड़वी कड़वी औषधियाँ खाई किन्तु वह गर्भ न तो गिरा, नसड़ा और नगला। गर्भावस्था में ही उस बालक को भस्माग्नि रोग हो गया जिससे वह जो आहार करता था वह पीप बन कर माता की नाड़ियों द्वारा बाहर आजाता था।नौ मास पूर्ण होने पर बालक का जन्म हुआ। वह जन्म से ही अन्धा, मूक और वहरा था । वह केवल मांस की लोथ सरीखा था। उसके हाथ पैर नाक कान आदि कुछ नहीं थे। केवल उनके चिह्न मात्र थे । रानी नेधायमाता को आज्ञा दी कि इसे ले जाकर उकरड़ी पर डाल दो। जब राजा को यह बात मालूम हुई तो उसे उकरड़ी पर डालने से रोक दिया और रानी से कहा कि यह तुम्हारी पहली सन्तान है, यदि इसे उकरड़ी पर डलवा दोगी तो फिर आगे तुम्हारे सन्तान नहीं होगी। इसलिये इसे किसी भूमिगृह में छिपा कर रख दो। राजा की बात मान कर रानी ने वैसा ही किया। इस प्रकार पूर्व भव के पापाचरण के कारण यह मृगापुत्र यहाँ इस प्रकार का दुःख भोग रहा है।
गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया कि भगवन् ! यह मृगापुत्र यहाँ से मर कर कहाँ जायगा ? तब भगवान ने उसके आगे के भवों का वर्णन किया।
यहाँ २६ वर्ष की आयु पूरी करके मृगापुत्र का जीव वैताढ्य पर्वत पर सिह रूप से उत्पन्न होगा। वह बहुत अधमी, पापी और कर होगा । बहुत पाप का उपार्जन करके वह पहली नरक में एक सागरोपम की स्थिति वाला नैरयिक होगा। पहलीनरक से निकल कर नकुल (नौलिया) होगा। वहाँ की आयु पूरी करके दूसरी नरक