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किरण १] नीतिवाक्यामृत और कन्नड-कवि नेमिनाथ २७.
श्रवणबेलगोल के ४७ नं० के शिलालेखगत उल्लिखित श्लोकों से ज्ञात होता है कि 'मेघचन्द्र' जी न्याय, व्याकरण, सिद्धान्त आदि अनेक विषयों के प्रखर विद्वान् थे। इसके अतिरिक्त यहां के नं० ४१, ५०, ५३, ५५ और ५६ के शिलालेखों में भी इनका विशद वर्णन मिलता है। वीरनन्दी के सिवा इन मेघवन्द्र के प्रभाचंद्र शुभकीर्ति आदि कई शिष्य थे, जिनका उल्लेख श्रवणबेलगोल के अन्यान्य शिलालेखों में पाया जाता है। "कर्नाटक कवि-चरिते" १ म भाग पृष्ठ १३२ से विदित होता है कि इन मेघचन्द्र ने ११४८ ई० में आचार्य पूज्यपाद के समाधिशतक की एक टीका* लिखी थी।
'कविचरिते' के लेखक का अनुमान है कि यह मेघचन्द्र ११७७ ई० में परलोकगत नयकीर्ति जी के शिष्य थे। “विनययशोनिधि पम्पन सुतंगे तिळिवन्तु पोच पोसगन्नडदि' समाधिशतक-टोका के इस उल्लिखित पद्यभाग से मालूम होता है कि मेघचन्द्र ने महाकवि पंपके सुपुत्र के लिये ही इस टीका का प्रणयन किया है। अगर यह 'पम्प' अभिनव पम्प (नागचन्द्र) ही हो तो इनके देहावसान के उपरान्त इन्हीं के लड़के के लिये मेघचन्द्र ने उक्त समाधिशतक की टीका लिखी होगी। यह अभिनव पम्प यश प्राप्त कन्नड कवियों में से एक हैं। इनके स्मारकरूप में हाल ही में कर्नाटकसंघ कर्नाटक कौलेज धारवाड की ओरसे एक सुन्दर पुस्तक प्रकाशित हुई है । यह सुप्रसिद्ध पांच-कन्नड-साहित्य महारथियों के–'पम्प' का काल-निर्णय, पम्प की रचनाशैली आदि भिन्न भिन्न विषयों पर विस्तृत और गवेषणापूर्ण पाँच लेखों से समलंकृत है। इसके भूमिका लेखक प्रख्यात कवि एवं लेखक श्रीमान् B. M. श्रीकण्ठय्य M. A. B. L. बेंगलूर हैं।
अस्तु अब मेघचन्द्र के शिष्य सिद्धान्तचक्रवर्ती वीरनन्दी जी की ओर आप दृष्टिपात करें। श्रवणबेलगोल के शिलालेखों के अतिरिक्त 'आचारसार' के अन्त में जो प्रशस्ति दो गयो है इस वीरनन्दी और इनके गुरु मेघचन्द्र जी का बहुत कुछ वर्णन मिलता है।
"सिद्धान्तार्णवपूर्णतारकपतिस्तर्काम्बुजाहर्पतिः शब्दोद्यानवनामृतोरुसरणियोगीन्द्रचूडामणिः ।
विद्यापरसार्थनामविभवः प्रोद्धृतचेतोभवः स्थेयादन्यमृतावनीमृदशनिः श्रीमेघचन्द्रो मुनिः ॥३०॥ यद्वाक्च्छीरवतंसमण्डनमणिवैदग्धदिग्धत्विषाम् यच्चारित्रविचित्रता शमभृतां सूत्र पवित्रात्मनाम् । यत्कीर्तिर्धवलप्रसादनधुरं धत्ते धरायोषितः
सत्रविद्यविभूषणं विजयते श्रीमेघचन्द्रो मुनिः ॥३१॥ * Indian antiquary vol. XIV Page 14.