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भास्कर
भाग २
(१२) चातक-सन्देश'--१४१ श्लोकों में है। इसमें एक ब्राह्मणद्वारा चातक को दूत बनाकर विवन्द्र म के महाराज रामवर्मा के पास संदेश भेजने का वर्णन है, जिसमें राजा का अनुग्रह प्राप्त करने का प्रयास है।
(१३) चेतोदूत-१२६ पद्यों में पूर्ण हुआ है। इसमें एक शिष्य का अपने ही मन को दूत बनाकर गुरुजी के पास संदेश भेजने का जिक्र है। इसके प्रत्येक श्लोक का अन्तिम चरण मेघदूत के एक पद्य के अन्तिम चरण के समान है।
(१४) जैन मेघदूत-यह ई० ११वीं शताब्दी में हुए अञ्चलगच्छे के मेरुतुङ्ग जी की रचना है। यह कवि प्रबन्धचिन्तामणि आदि ग्रंथों के कर्ता से भिन्न है। (JBBRAS., IX. 147) इसमें राजमती जी द्वारा मेघ को दूत नियत करके श्री नेमिनाथ जी के पास अपनी विरह-व्यथा का संदेश भेजने का वर्णन है। यह चार सन्धियों में समाप्त हुआ है जिनमें प्रत्येक के क्रमशः १०, ४६, १५ और ४२ पद्य हैं।
(११) तुलसोदूत को रचना सं० १७०६ में वैद्यनाथ भट्टाचार्य ने की है। कवि ने तुलसी के पत्ते को दूत बना कर गोपियों का संदेशा कृष्ण जी के पास भेजने का चित्र अङ्कित किया है। .
(५६) नेमिदत -यह विक्रम कवि की रचना है और इसका भाव जैन मेघदूत के समान है। इसमें १२३ श्लोक हैं; जिनमें से प्रत्येक का अन्तिम चरण कालिदास के मेघदूत का एक चरण है अर्थात् मेघदूत के चरण की समस्यापूर्ति इसमें की गई है।
(१७) पदान्त-नवद्वीप (बंगाल) के प्रसिद्ध राजा महाराज कृष्णचन्द्र के पिता राजा रघुराम राय के दरबारी कवि कृष्णसार्वभौम ने रचा था। यह गोपी-कृष्ण-वार्ता को बतलानेवाला काव्य सं० १६४१ में पूर्ण हुआ था। बंगाल के पण्डितों में मेवदूत के बाद इस काव्य की ही प्रसिद्धि है।
(१८) पवनदूत -धोई कवि की रचना है जो बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन के (१२वीं श०) दरबार के एक कवि थे। उनने इसमें दक्षिणभारत की निवासिनी एक गंधर्व-कन्या का संदेश पवनद्वारा लचमणसेन राजा के पास भेजने का वर्णन किया है, जो इस राजा पर आसक्त थी।
(१६) पवनदतम-श्रीवादिचंद्रजी सरि की रचना है जो ई० १७वीं शताब्दी में हुए हैं। इसके १०१ श्लोकों में कवि ने बतलाया है कि किस तरह उज्जैन के राजा विद्यानरेश ने पवन को दूत बनाकर अपनी रानी तारा के पास संदेश भेजा था, जिसे एक विद्याधर ले गया था ।
१। J. R. A. S., 1834, p. 451. २। अात्मानन्द-ग्रन्थरत्नमाला नं. २५ । ३। श्री जैन प्रोत्मानन्द-ग्रन्थमाला नं. ७६ । ४। संस्कृत साहित्य-परिषत् कलकता के पास एक प्रति है। ५ । काव्यमाला (द्वितीय गुच्छ) । ६ । काव्यकलाप (बंबई १८७४) पृष्ठ ५३। ७। कलकता संस्कृत साहित्य परिषत् सीरीज नं० १३ व J. A. S. B. 1905, pp. 53-68. ८। काव्यमाला गुच्छ १३ पृष्ट ६-२४ और हिन्दी जैन-साहित्य सीरीज नं. ३ ।