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भास्कर की प्रथम किरण में प्रकाशित श्रीमहावीर कुमार के तिरंगे चित्र का परिचय
श्रीमहावीरावतरण
- २५०० वर्ष पहले भारतवर्ष धर्म के नाम पर होनेवाले अत्याकाँप उठा था। स्वार्थी और सत्ताधारी लोग समाज पर मनमाने अत्याचार करने लगे थे । निरर्थक बलिदान और अर्थशून्य अश्वमेध, गोमेध, अजमेध और नरमेध तक धर्म के नामपर खुले आम होने लग गये थे । सर्वत्र लाहि ! वाहि !! की करुणध्वनि से धरा प्रतिध्वनित हो रही थी । प्राणिमात्र अधीर हो उठे थे । और चातक की भाँति किसी अतिaाता की आशा में सभी लोग टकटकी लगाये बैठे थे। ठीक उसी समय भगवान महावीर का स्वर्ग से अवतरण हुआ । संसार में शान्ति का साम्राज्य हो गया । बलिवेदियाँ और यज्ञ-कुण्ड शान्त हुए । अत्याचार एवं अनाचार विलीन हो गये । प्रेम का प्रवाह बह चला । रक्त- रञ्जित वसुन्धरा पुनः पुण्यभूमि बनी । " अहिंसा परमोधर्मः " का बिगुल पुनः बज गया ।
पावन
के में रात्रि के पिछले प्रहर का समय है। चारो ओर निस्तब्ध आषाढ़ मास शुक्लपक्ष शान्ति का ही दौर दौरा है । नीचे आषाढ़ के बादल हैं । प्राणतेन्द्र के रूप में भगवान महावीर पुष्पोत्तर विमान से चय कर रहे हैं । छत्राकार श्वेत पुष्पपुञ्ज पुष्पक विमान का परिचय दे रहे हैं । मुकुट में बैल का चिह्न प्राणतेन्द्र के प्रकट करता है । १४वीं सीढ़ी से उतरना प्राणत नामक १४वें कल्प (स्वर्ग) का सूचित करता है । सन्तप्त संसार को दाहिने हाथ से अभय प्रदान करते हुए भगवान उतर रहे हैं।
दाहिनी ओर मातंग यक्ष ओर बायीं ओर सिद्धायिनो यक्षिणी भगवान वर्द्धमान का सूचित करते हैं । यक्ष का वर्ण हरित और वाहन हाथी है । 1 ऊपर दोनों हाथों में धर्मचक्र धारण किये हुए हैं। वरद और अभयमुद्रा है । इसी प्रकार यक्षिणो का वर्ण सुवर्ण वाहन हंस है । दाहिने हाथ में पुस्तक और वाम हस्त वरदरूप में है । नीचे बलिवेदी और
यज्ञकुण्ड है 1
छोटेलाल जैन