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किरण ३ ]
वैद्य - सार
४४ - हृदरोगादौ सिद्धरसः
जातीफलं सैंधवहिगुलं च सुवर्णमित्रं विषपिप्पलीनाम् ॥ महौषधी बायु बिडंगहेमबीजं समञ्वोन्मत्तजंबुनीरैः ॥१॥ तदाद्र तायैः पृथुयाममात्रं निरंतरं कल्कंखल्बमध्ये ॥ सुमर्दनीयं वटकं च कुर्यात् गुंजाप्रमाणं सितया समेतम् ॥२॥ निर्हति हृद्रोगप्रमेहसतं बाताविसारं ग्रहणीशिसेवक ॥ करोति निद्रां फफशूलसिद्धरसोऽयमानयति प्रसिद्धम् ॥३॥
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टीका - जायफल, सेंधा ममक, सिंगरफ, शुद्ध सुहागा, शुद्ध विष, पीपल, सोंठ, वायविडंग, और सत्यानाशी के बीज ये सब बराबर भाग लेकर जंवीरी नींबू के स्वरस में दो प्रहर घोंट कर एक एक रप्ती के प्रमाण गोली बनावे | यह गोली मिश्री की चासनी के साथ सेवन करे तो हृदयरोग, प्रमेह बातरोग, बातातीसार, ग्रहणी तथा शिरोरोग शान्त होता है, बल्कि इससे निद्रा भी आती है और कफजन्य शूल इससे शान्त होता है।
४५ - शूलादौ शूलकुठाररसः
त्रिकुटः त्रिफलासुतं गंधटंकणतालकं । ताम्रविषविषमुष्टिं च समभागं समाहरेत् ॥१॥ भागविंशतिभियुक्तं जयपालं च पृथक् ददेत् । सर्व भृङ्गरसे पिष्ट्वा गुलिकां कारयेत् भिषक् ॥२॥ द्यः शूलकुठारोऽयं विष्णुचक्रमिवासुरान् । सर्वशुले प्रयुक्तोऽयं पूज्यपाद महर्षिणा ॥३॥
टीका - त्रिकटु, त्रिफला, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध सुहागा, हरतालभस्म, ताम्रभस्म
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विषनाग और शुद्ध कुचला ये सब एक एक भाग तथा बीस भाग शुद्ध जमालगोटा लेवे । सबको भंगरा के रस में घोंट कर एक रती प्रमाण गोली बनावे और एक एक गोली गर्म जल से देवे तो कैसा ही शुल हो अवश्य ही लाभ होगा। जिस प्रकार विष्णु के सुदर्शनचक्र से असुरों का नाश हुआ उसी प्रकार इससे शूल का नाश होता है ।