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[ भाग २
अधिक नहीं कही जा सकती है एवं करकण्डु महाराज का चरित्र भी दोनों शुभचन्द्र की रचना में आगया है । फिर भी यह अनुमानपरक है। प्रशस्ति एवं रचनाशैली आदि से इसका प्रकृत निर्णय किया जा सकता है । पाण्डवपुराण की प्रशस्ति से यह भी ज्ञात होता है कि "संशयिवदनविदारण" के कर्त्ता पाण्डवपुराण के कर्ता शुभचन्द्र से भिन्न नहीं हैं पाण्डवपुराण और संशयिवदनविदारण के कर्त्ता शुभचन्द्र का भिन्न भिन्न मानने की धारणा में मुख्य कारण यह हो गया है कि संशयिवदनविदारण प्रन्थ का प्रतिलिपिकाल संग्रहकर्ता को वि० सं० १९८८ मिला है। मेरे अनुमान से यह काल भ्रमपूर्ण सा ज्ञात होता है ।
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भास्कर
इसी प्रकार श्रवणबेलगोल के शिलालेखों में भी मुझे शुभचन्द्र चतुष्टयी के दर्शन होते हैं। एक तो देवकीर्त्ति के शिष्य दूसरे गण्डविमुक्त मलधारिदेव के शिष्य, तीसरे माघनन्दी के शिष्य और चौथे रामचन्द्र के शिष्य ।
पाण्डवपुराण की प्रशस्ति में प्रतिपादित " षड्वाद" ही संभवतः यह प्रस्तुत ग्रन्थ "षड्दर्शनप्रमाणप्रमेयानुप्रवेश" हो । किन्तु साथ ही साथ मन में यह भी शङ्का स्थान कर जाती है कि पाण्डवपुराण, कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा आदि अपने अन्यान्य ग्रन्थों की प्रशस्तियों में अपनी विस्तृत गुरुपरम्परा आदि का परिचय जिस प्रकार इन्होंने दिया है; इसमें भी दे दिये होते । अस्तु, जो हो इस ग्रन्थ की रचनाशैली एवं भाषा - सरणी प्रशस्त है । अन्तिम श्लोक से यह भी ज्ञात होता है कि आप अपूर्व वाद-पटु, तपस्वी एवं सिद्धान्त शास्त्र के प्रखर विद्वान् थे ।
बल्कि उल्लिखित श्रवणबेलगोल के शक सम्वत् १०४५ के ४३ (११७) वें शिलालेख में वर्णित २ य शुभचन्द्र देव की ओर मेरा ध्यान कुछ आकृष्ट सा हो जाता है । क्योंकि उस शिलालेख में वर्णित शुभचन्द्र के व्यक्तित्व और पाण्डित्यद्योतक विशेषणों में इस ग्रन्थ का अन्तिम एकमात्र श्लोक मिल सा जाता है । अतः इतिहास- प्रेमी विद्वान् इस ओर विशेष ध्यान देंगे ।