Book Title: Jain Siddhant Bhaskar
Author(s): Jain Siddhant Bhavan
Publisher: Jain Siddhant Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 379
________________ भास्कर [ भाग २ काढ़े में घोंट एवं एक एक रत्ती के बराबर गोली बनाकर छाया में सुखावे। मिश्री या शहद के साथ इसका सेवन करने से बीस प्रकार के प्रमेह को नाश करता है, नपुंसकता, दाह, मंदाग्नि तथा मद्य के दोष को जीतनेवाला एवं सोमरोग, मूत्रकृच्छ्र, वस्ति के शूल को भी नाश करता है। यह सब प्रकार के शूलों को नाश करनेवाला पूज्यपाद स्वामी का बनाया हुआ प्रमेहगज केशरी उत्तम प्रयोग है। ३४--मन्दाग्नौ बड़वाग्निरस: शुद्धं सूतं ताम्रभस्म तालबोलं समं समं॥ अर्कतीरेण संमर्थ दिनमेकं द्विगुंजकम् ॥१॥ बड़वाग्निरसं खादेन्मधुना स्थौल्यशांतये ॥ पूज्यपादप्रयुक्तोऽयं खलु मंदाग्निनाशकः ॥२॥ - टीका-शुद्ध पारा, ताम्रभस्म, तवकिया हरताल भस्म, शुद्ध बोल बराबर बराबर लेकर इन सबों का अकौवा के दूध में दिन भर घोंटे तथा दो दो रत्ती की गीलो क्लाये। इसी का नाम बड़वाग्नि रस है-इसको शहद के साथ सेवन करने से स्थूलता दूर होती है। यह पूज्यपाद स्वामी का प्रयोग मंदाग्नि का नाश करनेवाला है। ३५--रक्तदोषे तालकेश्वररसः तालकं मृततानं च समं खल्वे विमर्दयेत् ॥ भ्याकर्कोटकीकंदस्वरसेन दिनत्रयम् ॥१॥ द्विगुंजं मधुना दद्यात् पश्चात् क्षौद्रोदकं पिबेत् ॥ रक्तदोषप्रशांत्यर्थं पूज्यपादेन भाषितः ॥२॥. टीका-तकिया हरताल का भस्म तथा ताम्रभस्म ये दोनों खरल में बांझककोड़ा के कंद के स्वरस में तीन दिन तक घोंट कर दो दो रत्ती की गोली बांधे। उस गोली को सुबह शाम मधु के साथ सेवन करे और ऊपर से मधु का पानी पिये। यह रक्तदोष की शांति के लिये पूज्यपाद स्वामी ने कहा है। .

Loading...

Page Navigation
1 ... 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417