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किरण ३ ]
वैद्य-सार
मरिचैः क्षोधितैः स्वरसैश्चार्द्रा कस्य च पाययेत् । जीर्णज्वरं शुलमेहं कठिनं तु महोदरं ॥३॥ प्लीहां च कृमिदेोषं च हरेत् कुंभाह्वयं गं । घोड़ाचूलिरितिख्यातो पूज्यपादेन भाषितः ॥४॥
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टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध सुहागा, शुद्ध गंधक, शुद्ध विष, सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, शुद्ध aafकया हरताल का भस्म और शुद्ध जमालगोटा ये सब चीजें बराबर बराबर लेकर पलास के फूल के स्वरस में एक प्रहर तक घोंट कर एक पक रत्ती की गोली बांधकर छाया में सुखावे। इस गोली का एक रत्ती पीसी हुई काली मिर्च तथा अदरख के रस के साथ पिलावे । यह जीर्णज्वर, शूल, प्रमेह, कठिन उदर रोग, प्लीहा, कृमि और कुंभकामला hra करता है । यह घोड़ाचोली रस. पूज्यपाद स्वामी का बतलाया हुआ योग बहुत उत्तम है।
२३ - विधे इच्छा भेदिरमः
सूतं गंधं च मरिचं टंकणं नागराभये । जैपालबीजसंयुक्तो क्रमेण वर्धनं करेत् ॥ १॥ सर्वतुल्यैर्गुडैर्म इच्छाभेदिरसः स्मृतः । चतुर्गु आवडी योग्या ततः तोयं पिबेन्मुहुः ||२|| विबंध ज्वरगुल्मं च शोफशूलोदरभ्रमम् । पांडुकुष्टाग्निमान्धं च श्लेष्मपित्तानिलं हरेत् ॥३॥
सोंठ, बड़ी हर्र का
टीका - शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, काली मिर्च, सुहागे का फूल, बकला, शुद्ध जमाल गोटा, ये क्रम से एक एक भाग बढ़ा कर लेवे अर्थात् पारा १ भाग गंधक २ भाग, मिर्च ३ भाग सुहागा ४ भाग, सौंठ ५ भाग, हर्रे ६ भाग, जमालगोटा ७ भाग लेवे और इन सबको पीसे तथा सबके बराबर पुराना गुड़ मिला कर चार चार रन्ती की गोली बनावे, सुबह शाम एक एक गोली सेवन करे और ऊपर से २ तोला पानी पीये तथा प्यास लगने पर कई बार पानी पीवे इससे रेचन होता है । यह दवा ज्वर, गुल्म, सूजन, शूल, उदर रोग, भ्रम रोग, षांडु, कुष्ट, अग्निमांद्य-कफ, पित्त और बात इन सब रोगों का नाश करनेवाला है।