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किरण ४]
अमरकीर्तिगणि-कृत षट्कर्मोपदेश
इस प्रकार यह अमरकीर्तिगणि का षट्कर्मोपदेश पूरा होता है। यहाँ जो विवरण दिया गया है उससे ग्रन्थ के विषय का, कर्ता की भाषा-शैली का तथा काव्य के गुणों का परिचय पाठकों को मिल जायगा। ग्रन्थ के कर्ता काष्ठा संघ के थे, पर प्रन्थ भर में ऐसी कोई बात कम से कम मेरी दृष्टि में नहीं आई जो दूसरे किसी भी संघ के अनुयायी को अग्राह्य हो। पूजा के अष्ट द्रव्यों का क्रम तक कर्ता ने सर्वमान्यतानुसार ही रक्खा है। प्रन्य उद्धार के योग्य है। इति शम् ।
छक्कामहिं उवसग्गु ण ढुक्कइ । छक्कम्महिं रिद्धिहि ण वि चुक्का । छक्कम्महिं दुक्काम तुहिं । छक्कामहिं पमाय विहट्टहिं । छक्कम्महिं पसत्ति मणि जम्मइ । छक्कम्महिं सुरणयरिहि गम्मइ । छक्कम्महि पसिद्धि जणे लब्भइ । छक्कम्महि तिहुवणु खणि खुब्भइ । छक्कामहि वसि जायई परवर । छक्कामहि देव वि आणायर । छक्कम्महि गंछिउ संपज्जइ । छक्कामह' सुरदु'दुहि वजह ।
छक्कामहिं उप्पज्जा केवलु । छक्कम्महिं लब्भइ सुहु अवियलु । ...त्ता-छक्कामइ जो पारु सल्लमणु, भविउ भवाहि-विवजिउ पालह ।
सो जिणणाहे दीसियउ, मोक्ख-मगु थिर-दिट्टि णिहालइ ॥१४,१७॥