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भास्कर
[भाग २
जम्बद्वीप-प्रज्ञप्ति
__ (प्रथम भाग) इस आगम में जम्बूद्वीप के वर्णन के अनन्तर भरतक्षेत्र का वर्णन करते हुए कुलकरों से लेकर भरत चक्रवर्ती के मोक्ष तक का वृत्तान्त विस्तार से लिखा है। इसके ऊपर श्रीशान्तिचन्द्र की विस्तृत और सुन्दर टीका है। मूल सूत्र के वृत्तान्त को टीका में बहुत विस्तृत किया है। यह प्रथम भाग देवचंद खान भाई पुस्तकोद्धार-फंड सूरत से सन् १९२० में प्रकाशित हुआ है। इस प्रथम भाग में निम्न सूत्र भौर पृष्ठों में निम्नलिखित वृत्तान्त आता है। सूत्र संख्या | पृष्ठ संख्या
विषय सूत्र २८ से २६ तक पृष्ठ ११२ से १३४ तक सुमति आदि कुलकरों के नाम हक्कारादि नीति आदि। , ३० से ३३ तक , ३५ से १६४ ,, भगवान् ऋषभदेवजी का जन्म, समाज, राज्यव्यवस्था,
चार हजार पत्रियों के साथ दीक्षा ग्रहण का वर्णन, भगवान् की मुनिचर्या का वर्णन, उनके गणधर-साधु आदि को संख्या, भगवान् का संहनन, कुमारावस्था आदि का काल, निर्वाण, इन्द्रादि द्वारा निर्वाणोत्सव, और तीसरे आरे की
३४ से ४० तक ,११४ से १७८ ,, __ चौथे, पाँचवे, छठे आरे का वृत्तान्त ।। ११ से १ तक ,, १७८ से २८१, भारतवर्ष का वर्णन, भारत नाम पड़ने का कारण,
विनीता का वर्णन, भरत के राज्य का वर्णन, चक्र की . प्राप्ति और पूजोत्सव, षट्-खण्ड की साधना का विस्तार से वर्णन, आपात किरातों के साथ युद्ध, अश्वरत्नादि १४ रखों की प्राप्ति, ऋषभकूट में अपना नाम लिखना, नमि-विनमि की साधना, पश्चिम दिशा की साधना, भरत चक्रवर्ती का विनीता में प्रवेश, भरत के चक्रवर्तित्व का अभिषेक, भरत चक्रवर्ती की राज्य-समृद्धि का वर्णन, भरत का केवलज्ञान, मुनि-वेष का ग्रहण और मोक्ष।
कल्पसूत्र इस ग्रंथ की प्रसिद्धि श्वेताम्बर जैनों में और ग्रंथों की अपेक्षा से बहुत ज्यादा है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक पर्युषणों महापर्व के समय इस ग्रंथ को मुनिराज आद्यन्त बाँचते हैं और श्रावकश्राविकायें सुनती है । इस प्रथ को नौ भागों में विभक्त करके नौ व्याख्यानों में पूरा करने की प्रणाली