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किरण ४]
निसिधि के सम्बन्ध में दो शब्द
जाता है। जब किसी शब्द का मूल दृष्टि से श्रोझल हो जाता है तब उसके स्थान में कोई भी अशुद्ध रूप प्रचलित होने लगता है। कनड़ी का 'निष्टिग'' और संस्कृत 'निसिधि' इसी कोटि के रूप हैं।
खारवेल के शिलालेख को पन्द्रहवीं पंक्ति में 'निसीदिय' शब्द आता है। यथा'भरहतनिसीदियसमीपे'। वहाँ यह शब्द स्पष्ट रूप से 'अहंन्' के अग्निसंस्कार के स्थान पर बनाये गये स्मारक को बतलाता है। इस स्मारक का आकार शायद बहुत कुछ प्रांतीय बनावट के ऊपर निर्भर है। दक्षिण भारत में ऊँचा चौकोर चबूतरा बनाया जाता है। यह बात विचारणीय है कि खारवेल के शिलालेख के 'निसीदिय' को स्तूप समझना उपयुक्त होगा या नहीं ? कुछ शिलालेखों से यह स्पष्ट है कि निषीदिका का बड़ा आदर था और उस स्थान पर पूजा और प्रतिष्ठा भी होती थीं।
- - इ० सी०२, नं० ६५ । १ इ० सी० २, नं० ११७, ११८, १२८ इत्यादि ।
३ भण्डारकर प्राच्य-विद्यामन्दिर पूना की पत्रिका जिल्द १४ भाग ३-४ से ६० कैलाशचन्द्र शानद्वारा अनुवादित ।
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