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किरण ३ ]
अमरकीर्तिगणि और उनका षट्कर्मोपदेश
प्रति पर से । उक्त 'महात्मा' का लिखा हुआ अंश शुद्ध तो नहीं है पर इतना अशुद्ध भी नहीं है जितना उक्त वाक्य की अशुद्धता पर से अनुमान किया जा सकता है।
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२ कवि परिचय
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कवि ने अपने ग्रन्थ के आदि और अन्त में अपना कुछ परिचय देने की कृपा की है जिससे उनके विषय में बहुत सी ज्ञातव्य बातें विदित हो जाती हैं । उनका नाम अमरकीर्ति था । उन्होंने अपनी 'मुनि', 'गणि' और 'सूरि' उपाधियां भी जाहिर की हैं जिनसे ज्ञात होता है कि वे गृहस्थाश्रम त्याग कर दीक्षित होगये थे और उन्होंने बहुत विद्वत्ता प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा भी दो है जिससे वे माथुर संघी और चन्द्रकीर्ति मुनीन्द्र के शिष्य सिद्ध होते हैं । उनकी पूरी गुरुपरम्परा इस प्रकार पाई जाती है*
अमिय
(अमितगति)
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शान्तिसेन
T अमरसेन
श्रीषे
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चन्द्रकीर्ति
अमरकीर्ति
प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इस परम्परा के आदि पुरुष 'अमियगर' कौन थे । हमारे कवि ने उनको 'महामुनि' 'मुनि-चूड़ामणि', 'शम - शील- धन', 'कीर्तिसमर्थ', 'बहुत से शास्त्रों के रचयिता' तथा 'अपने गुणों द्वारा नृपति के मन को आनन्दित करनेवाले' इन विशेषणों से विभूषित किया है। विचार करने से ये अमियगर महामुनि प्राचार्य अमितगति ही विदित होते हैं जिनके बनाये हुए तीन ग्रन्थ, धर्मपरीक्षा, सुभाषित - रत्नसंदोह और भावनाद्वात्रिंशिका जैन समाज में सुविख्यात हैं। उनके श्रावकाचार, पंचसंग्रह और योगसार- प्राभृत नामक ग्रन्थ भी प्रसिद्ध हो चुके हैं। उनके बनाये हुए जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सार्द्धद्वयद्वीप-प्रज्ञप्ति और व्याख्या- प्रज्ञप्ति इन चार गन्थों के नाम भी पाये जाते हैं। इस तरह वे बहुत से शास्त्रों के रचयिता सिद्ध हैं । अमितगति ने अपने सुभाषितरन-संदोह में अपने को 'शम- दम-यम- मूर्तिः' 'चन्द्रशुभ्रोरुकीर्तिः' तथा धर्म-परीक्षा में 'प्रथितविशद कीर्तिः' विशेषण लगाये हैं जिनसे अमरकीर्ति के 'शमशीलधन' और 'कीर्तिसमर्थ' विशेषणों की सार्थकता सिद्ध होती है । यद्यपि अमितगति के ग्रन्थों में उनके देखो परिशिष्ट १ (१, ५, ६ आदि )