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भास्कर
[ भाग २
काव्य का यह अन्तिम श्लोक आत्म-प्रशंसा से गूंज रहा है। यह पाठकों की आँखों में आत्माभिमान सा खटकता है। परन्तु, जिनसेन जी ने इसमें ऐसी युक्ति निकाली है कि "बहुगुणमपदोषं, मलिनितपरकाव्यम्" इत्यादि विशेषण मेघदूत के भी हो सकते हैं, और इस तरह आत्मश्लाघा के दोष से अपने को बचा लिया है। ___अस्तु, प्रिय पाठक वृन्द ! श्रीजिनसेनाचार्य ने रौद्र वीर, शान्त इत्यादि प्रायेण शृङ्गारविरोधी रसों में शृङ्गार की सजीव मूर्ति को परिवर्तित कर के अपनी बुद्धि की चम
कारिता का परिचय दिया है। मैंने यथासाध्य समयानुकूल इस काव्य के गुणदोषों का विवेचन तो किया है, परन्तु पग-पग पर कवि की अम्वरविहारिणी कल्पना हृदयग्राहिणी भावपरम्परा, रमणीय रचना उनके उत्कर्ष को मुक्त कण्ठ से स्वीकार करने को बाध्य कर ही देती है। इच्छा थी कि अपने प्रेमी पाठकों के सम्मुख इस अनुपम काव्य के सर्वाङ्ग का स्वरूप रक्खें। पर, समयाभाव और लेख के वृहदाकार हो जाने के भय से मैंने इस काव्य के केवल कुछ ही अंश की छानबीन की है। यदि मेरे इस लेख से पाठकों का कुछ भी मनोविनोद हुआ तो समय पर फिर भी मैं अपने तुच्छ उपहारों को लेकर उनके सामने उपस्थित हूंगा। ___ सं० नोठ-प्रातःस्मरणीय महाकवि जिनसेनाचार्यरचित पार्थाभ्युदय के विषय में इस समय मैं
अपनी ओर से कुछ भी न लिखकर "हिन्दीविश्वकोष" भाग ८, पृष्ट ३१७ की ही कुछ पंक्तियाँ नीचे उद्धृत किये देता हूं :
"यह ३६४ मन्दाक्रान्ता वृत्तों का एक खण्ड काव्य है। संस्कृतसाहित्य में यह अपने ढंग का एक ही काव्य है। इसमें महाकवि कालिदास के सुप्रसिद्ध 'मेघदूत' काव्य में जितने श्लोक हैं और उन श्लोकों के जितने चरण हैं वे सब एक एक वा दो-दो कर के इसके प्रत्येक श्लोक में प्रविष्ट कर दिये गये हैं, अर्थात् मेघदूत के प्रत्येक चरण को समस्यापूर्ति कर के यह कौतुकावह ग्रन्थ रचा गया है। इसमें पार्श्वनाथ स्वामी की पूर्व जन्म से लेकर मोक्षप्राप्ति तक विस्तृत जीवनी वर्णित है। मेघदूत
और पार्श्वचरित्र के कथानक में आकाश पाताल का पार्थक्य है, तथापि मेघदूत के चरणों को लेकर पार्श्वनाथ का चरित्र लिखना कितना कठिन है, इसका अनुमान काव्यरचना के मर्मज्ञ ही कर सकते हैं। ऐसी रचनाओं में क्लिष्टता और नीरसता का होना स्वाभाविक है, किन्तु 'पार्वाभ्युदय' इन दोनों दोषोंसे साफ बच गया है। इसमें सन्देह नहीं कि इनकी रचना कविकुलगुरु कालिदास की कविता के जोड़ की है। अध्यापक के० बी० पाठक का कहना है-. ....... "The first place among Indian poets is alloted to Kalidas by consent of all; Jinasena, however claims to be considered a higher genius than the author of cloud Messenger (Meghaduta)"
अर्थात् “यद्यपि सर्वसाधारण की सम्मति से भारतीय कवियों में कालिदास को पहला स्थान दिया गया है, तथापि जिनसेन मेघदूत के कर्ता की अपेक्षा अधिकतर योग्य समझे जाने के अधिकारी हैं।"
. के. बी० शास्त्री