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[ भाग २
इस ग्रन्थ के पद्यों में पूज्यपादजी का नाम कहीं नहीं मिलता। किन्तु मूल प्रति में प्रकरणसमाप्ति-सूचक वाक्य 'पूज्यपादकृत' लिखा रहने के कारण प्रतिलिपि कर्ता लेखक को भी 'पूज्यपादकृत' ज्यों का त्यों लिख देना अनिवार्य था । अस्तु, इस ग्रन्थ के विषय और संस्कृत-रचना की ओर ध्यान देने से सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रन्थों के निर्माता प्रात:स्मरणीय हमारे प्रख्यात पूज्यपादजी को इस ग्रन्थ के रचयिता मानने में मन हि-किचाता है । सम्भव है कि यह कृति किसी दूसरे पूज्यपाद जी की है। इस सन्देहास्पद विषय को हल करने के लिये और और प्रतियों की जरूरत है। आशा है कि अन्यान्य पण्डितमण्डली भी इसकी ओर ध्यान देगी ।
(६) ग्रन्थ नं० २०६
ख
लम्बाई १३॥ इञ्च
प्रारम्भिक भाग
भास्कर
मदनकामरत्नम् कर्त्ता - पूज्यपाद (?)
मृतं सूतलोहाम्र रौप्यं समांशम्
विषय - वैद्यक
भाषा-संस्कृत
चौडाई ८ इञ्च
मङ्गलाचरण
(अभाव)
महापूर्णचन्द्रोदयः
...मृतस्वर्णगन्धं (?)
सर्व (?) विनिक्षिप्य खल्वे विमर्धेत्ततः स्वर्णतैलोद्भवेन त्रिवारम् ॥१॥ ततः शाल्मलीसारनिर्यासगुआं प्रयुञ्जीत तज्ज्ञः सुहृद्यानुपानैः । त्रिदोषत्क्षयं चापि हन्यात्परेषाम् (?) वयस्तम्भकारी गदोन्मादहारी ॥२॥ वधूगर्वहारी रतौ वृद्धिकारी कृशत्वापहारी कलापूर्णधारी समस्तेषु योगेषु भूमौ विशेषात् प्रसिद्धो महापूर्णचन्द्रोदयोऽयम् ||३२||
पत्र संख्या ६४.