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किरण ]
धाम्मिक-उदारता
तीर्थंकरों के समवसरण' में अर्थात् जिस स्थान से तीर्थंकर धर्मोपदेश देते थे वहां पर सब जीवों का-पशुपतियों तक का भी स्थान रहता था और देवता से लेकर तिर्यंच तक सर्व प्रकार के प्राणी अपनी अपनी भाषा में भगवान का उपदेश समझ लेते थे। इस अलौकिक शक्ति को तीर्थंकरों का 'अतिशय' बताया गया है।
जैनियों के अन्तिम तीर्थकर श्रीमहावीर स्वामी को हुए आज २५ शताब्दी हो चली तो भी जैनियों में वही उदारता देखने में आती है। इधर कई शताब्दी तक मुसलमान सम्रादगण भारत के शासक रहे। यहाँ के निवासियों से उनलोगों का राजा प्रजा का सम्बन्ध हुआ था। वे लोग हिन्दु धर्मावलम्बियों को समय समय पर उत्पीड़ित करते रहे। देखिये--हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थस्थान 'सोमनाथ' जो भारत के सुदूर सौराष्ट्र प्रांत में है वहाँ महम्मद गजनी ने जिस प्रकार मूर्ति को नष्ट किया था वह कथा भारत के समस्त इतिहास की पुस्तकों में वर्णित है। शताब्दियों तक अनाचार होता रहा और रही सही लगभग १७वीं शताब्दी में 'काला पहाड़' ने बिहार और बंगप्रान्त के सब हिन्दू बौद्ध देवता और देवियों की मूर्तियां तोड़ दी थीं। परन्तु धार्मिक उदारता के कारण जैनियों पर कोई विशेष अत्याचार को उल्लेख नहीं मिलता। मुझे कुछ समय पूर्व तीर्थराजगृह के पंच पहाड़ों में से पहिले विपुलाचल के श्रीपार्श्वनाथ मंदिर की विशाल प्रशस्ति मिली थी। यह संस्कृत भाषा में गद्य-पद्यमय है और इसका समय विक्रम संवत् १४१२ अर्थात् १५वीं शताब्दी है। उस समय सम्राट फिरोज़ शाह राज्य करते थे। उक्त प्रशस्ति में उल्लेख है कि मुसलमानगण भी जैनियों के धार्मिक कार्य में सहायता देते थे। प्रशस्ति के आदि और अन्त के कुछ आवश्यक अंश यहाँ उद्धृत किये जाते हैं :-- _ "ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथाय। श्रेयः श्रीविपुलाचलामरगिरिस्यः। स्थितिस्वीकृतिः । पनश्रेणिरमाभिरामभुजगाधीशस्करासंस्थितिः॥ पादासीनदिवस्पतिः शुभफलश्रीकीर्तिपुष्पो दामः। श्रीसंघाय ददातु बांछितफलं श्रीपार्श्वकल्पद्रुमः ॥१॥ .. श्रीराजगृहमहातीर्थे । गजेंद्राकारमहापोतप्राकारश्रीविपुलगिरिविपुलचूलापीठे सकलमहीपालचक्रचूलामाणिक्यमरीचिमंजरीपिंजरितचरणसरोजे । सुरत्राणश्रीसाहिपेरोजे महीमनुशासति । तदीयनियोगान्मगधेषु मलिकवयो नाम मंडलेश्वरसमये। तदीयसेवकसहणसदुरदीनसाहाय्येन ...............इति विक्रम संवत् १४१२ आषाढ़ बदि ६ दिने। श्रीखरतरगच्छशृङ्गार. सुगुरुश्रीजिनलब्धिसूरिपट्टालंकारश्रीजिनचंद्रसूरिणामुपदेशेन ।............ठ वच्छराज ठ० देवराज सुश्रावकाभ्यां कारितः......श्रीपार्श्वनाथप्रासादस्य प्रशस्तिः॥"
भावार्थ यह है कि सुलतान फिरोज साह ने मलिक वय को मगध प्रदेश का सूबा अर्थात् शासक नियुक्त किया था। सूबा के कार्यकर्ता शाह नासरुद्दीन की सहायता से मगधदेश