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किरण १ ]
धार्मिक-उदारता
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but also of their lofty ideals and noble lives. They are of the greatness that is India. There is a spirit of helpfulness, tolerence and sacrifice coupled with their intelligence and religious devotion that marks them as one of the world's choice communities."
अर्थात् "जैन साधुओं' और गृहस्थ जनों के शिष्टाचार और विद्वत्ता के साथ साथ उनके ऊ'चे आदर्श और उत्कृष्ट जीवन का यहां उल्लेख कर देना शायद उचित होगा । उनके बड़प्पन से भारत गौरवान्वित है । उन में सहायता, सहनशीलता और त्याग की शक्ति । उनकी बुद्धि और धार्मिक लवलीनता इन सब गुणों के साथ मिलकर इन्हें संसार के आदर्श सम्प्रदायों में से एक प्रमाणित करती है।"
यह देखकर आश्चर्य होता है कि भारत के किन्हीं भी धर्मावलम्बियों में जैनियों की तरह धार्मिक उदारता नहीं पाई जाती है। यदि अजैन विद्वानगण अपने २ साहित्य से ऐसे २ दृष्टांत प्रकाशित कर सकें तो मेरा यह भ्रम दूर हो जाय। अजैन साहित्य के नाना ग्रन्थों पर जैन लोगों ने किस प्रकार टीका, वृत्ति आदि की रचना की है यह निम्नलिखित तालिका से पाठकों को विदित होगा। यहां तक कि हिन्दीग्रन्थ पर भी जैनाचायने कई टोकायें रच डाली हैं ।
जैनविद्वानों ने सिद्धान्त के अतिरिक्त व्याकरण, न्याय, काव्य, कोष, अलंकार, नीति, ज्योतिष आदि नाना विषयों पर अच्छे २ ग्रन्थ रचे हैं। केवल हेमचन्दाचार्य के ही अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं । इनके पूर्व सिद्धर्षि आचार्य ने 'उपमिति भव-प्रपंच- कथा' नामक ग्रन्थ लिखा था जो कि साहित्यिक दृष्टि से बड़े महत्व का है । इस लेख में इन सबों का उल्लेख करना अनावश्यक है । इतना ही लिखना यथेष्ट होगा कि श्रीमहावीर स्वामी के पश्चात् आज लगभग पच्चीस शताब्दी तक जैन लोग धार्मिक उदारता के साथ साहित्य की सेवा बजा रहे हैं। जैनाचार्यगण महत्त्वपूर्ण अजैन ग्रन्थों के नाम लेकर स्वयं अच्छे अच्छे काव्य रचे हैं । ११वीं शताब्दी में श्रीजिनेश्वर सूरिने "जेननेषधीय” नामका एक सुन्दर काव्य की रचना की थी। श्री जयशेखर सूरिने "जैन कुमार-संभव" लिखा है जो उनकी विद्वत्ता प्रकट करती है । " जैनमेघदूत" की रचना भी प्रशंसनीय है । भारतवर्ष के अन्य विद्वानों में कहीं भी इस प्रकार की उदारता का दृष्टान्त नहीं मिलेगा ।