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नातिवाक्यामृत और कन्नड-कवि नेमिनाथ
(ले० पण्डित के० भुजबली जी शास्त्री)
गत वर्ष जब घर गया था तब कारकल के जैनछात्रावास में संचित कुछ ताडपत्रांकित प्रन्थों के दर्शन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। उन ग्रन्थों में से एक सोमदेव सूरिकृत नीतिवाक्यामृत की कन्नड टीका भी थी। इस टीका के रचयिता नेमिनाथ हैं। इन्हों ने प्रन्थ के आदि और अन्त में मेघवन्द्र नौविद्यदेव एवं वीरनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्ती को बड़ी श्रद्धा से स्मरण किया है। इनके समाप्तिसूचक अन्तिम बाक्य इस प्रकार हैं :"स्वस्ति समस्तानवद्यविद्याविलासिनी विलासमूर्ति सकलसैद्धान्तचक्रवर्तीसम प्रसन्न कविराज विद्वज्जनमनस्सरसि-मराल श्रीमन्मेषचन्द्र बौविद्यदेव दिव्यप्रसादासाधितात्मप्रभाव श्रीमद्वारनन्दि सैद्धान्तदेव प्रसाद प्राप्त प्रसन्नकवितारामासमासादित विविध प्रेम निज कुलकुवलयानन्दसोम पूर्वदल्लि सन्धिविग्रपदविन्यासद श्रीमन्नेमिनाथ रचित नीतिवाक्यामृतवृत्ति सकलार्थदीपवर्ति सर्वशास्त्रमूर्ति चन्द्रार्कतारं वरं निल्के मङ्गलम्"। ___ अब सर्वप्रथम त्रविद्यदेव मेधचन्द्र एवं सिद्धान्तचक्रवर्ती वीरनन्दी के सम्बन्ध में कुछ विचार करना है। वीरनन्दी के गुरु यह मेघवन्द्र वही हैं जिनकी प्रशंसा आचारसार की प्रशस्ति एवं श्रवणबेलगोल के कई शिलालेखों में दृष्टिगोचर होती है। यह मूलसंघ. पुस्तकगच्छ एवं देशीयगण के आचार्य थे। इनको गणना बहुत बड़े विद्वानों में है। .
तर्कन्यायसुवज्रवेदिरमलार्हत्सूक्तिसन्मौक्तिकः शब्दग्रन्थविशुद्धशंखकलितः स्याद्वादसद्विद्रुमः । व्याख्यानोर्जितपोषणप्रविपुलप्रशोद्धवीचीवयोजोयाद्विश्रुतमेघचन्द्रमुनिपस्त्रीविद्यरत्नाकरः॥
श्रीमूलसंधकृतपुस्तकगच्छदेशीयोद्यद्गणाधिपमुतार्किकचक्रवर्ती। सैद्धांतिकेश्वरशिखामणिमेघचन्द्र
स्त्रीविद्यदेव इति सद्विबुधाः स्तुवन्ति ॥ सिद्धान्ते जिनवीरसेनसदृशः शास्त्राजनीभास्करः षट्तवकलङ्कदेवविबुधः साक्षादयं भूतले। सर्वव्योकणे विपश्चदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयम् विद्योत्तममेघचन्द्रमुनिपो वादीभपंचाननः ॥