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भास्कर
[ भाग २
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अंत में मैं एक बात का और उल्लेख कर के इस लेख को समाप्त करता हूँ। कन्नड टीकाकार नेमिनाथ जी ने अपनी टीका के सर्वान्त में 'माघनन्दी' भट्टारक को प्रशंसारूप में याद किया है। पता नहीं लगता है कि माघनन्दी भट्टारक से इनका कैसा सम्बन्ध था । 'माधनन्दी' नाम के कई प्राचार्य हो गये हैं, अतः निन्ति रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि यह माघनन्दी कौन से हैं। माघनन्दिविषयक बातको खुलासा करने के लिये “जैन शिलालेखसंग्रह" में संगृहीत श्रवणबेलगोल के अन्यान्य शिलालेखो में अडित माघनन्दी नाम के आचार्य, मुनि एवं कवियों का एक कोष्टक तयार कर नीचे दिये देता हूँ -: . क्रम न० शि० ले न० नाम
गुरु नाम ___ शक सं० वि० सं० १ १०५ माघनन्दी
१३२० १४५५ २ १२६ ,
कुमुदवन्द्र १२०५ १३४० कुलचन्द्र १०८५ १२२० कुलभूषण १०८५ १२२० चतुर्मुख १०२२ लगभग ११५७
चारुकीर्ति १२३५ १३७० ४२, १२४, माघनन्दी नयकीर्ति १०६६ १२३४ १२८, १३० (श० सं० अ० ११०३,)
(वि० सं० १२३८)
माघनन्दी श्रीधरदेव १०६ १२३४
,, (भट्टारक) भानुकीर्ति ११७०. १३०५
(श०सं०११७० वि० सं० १३०५) १० ४६६ माघनन्दी व्रती x ११७० १३०५ ११ १२६ माघनन्दी सि० च० x १२०५ १३४.
(श०सं० १२०५ वि० सं० १३४०) १२ ४७१ माघनन्दी सिद्धान्तदेव x x x १३* भूमिका माधनन्दी गुप्तिगुप्त x x ___मेरा अनुमान है कि नं० ४६६ के शिलालेखाङ्कित भानुकीर्तिजी के शिष्य माधनन्दी भट्टारक को ही नेमिनाथ ने स्मरण किया है। कारण यह कि नेमिनाथ ने भट्टारकोपाधिविशिष्ट ही माघनन्दी का स्मरण किया है और साथ ही साथ इस भट्टारक माघनन्दी के समकालीन भी नेमिनाथ हो जाते हैं। उल्लिखित कोष्टक से यह भी पता चल जाता है कि
*नन्दी-सन्ध की पट्टावली के आधार पर