Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ब्रह्मचारी दम्पति कच्छदेश का वासी श्रेष्ठी अर्हद्दास बड़ा ही समृद्ध था, भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही विभूतियों से । उसकी पत्नी अर्हद्दासी भी बड़ी भगवद् भक्त और धर्म - परायणा थी । प्रायः माता पिता के संस्कार सन्तान में भी आते हैं । अस्तु, दोनों के उज्ज्वल संस्कारों का प्रतीक था, उनका इकलौता पुत्र - 'विजय' । - - Jain Education International १ यौवन के द्वार पर पहला कदम रखा ही था कि एक वार विजय ने सन्तों के श्रीमुख से 'ब्रह्मचर्य' का उपदेश सुना, जीवन - विकास में उसका महत्त्व समझा । सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य धारण करने में अभी अपने को असमर्थ समझकर उसने ब्रह्मचर्य - सम्बन्धी एक सीमित संकल्प किया" विवाह होने पर भी प्रत्येक शुक्ल पक्ष में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूंगा ।" सत्संकल्प कभी - कभी कठोर परीक्षा लेते हैं। संयोग ऐसा मिला कि 'विजय' का विवाह उसी नगर के धनावह सेठ की कन्या 'विजया' के साथ हुआ । विजया रूपवती थी, सुशिक्षता थी और साथ ही धर्मशीला भी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94