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जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ धर्मशास्त्रों का वैराग्य अभी हृदय में उतरा नहीं है। धर्मगुरु के मुख से जो गुरुजनोचित बात सुनना चाहता था, वह अभी तक किसी ने नहीं सुनाई।" राजा ने मंत्री की ओर देखा--"क्यों"जैन मुनि सभा में नहीं आए ? क्या उन्हें निमन्त्रण नहीं दिया तुमने ?"
"महाराज ! वे इस प्रकार के आदेश एवं निमन्त्रण पर नहीं आते हैं"-मंत्री ने कहा। ___......."तो निवेदन करना चाहिए था। अभी तक की चर्चा में तो कोई रस नहीं आया। एक ही घिसी-पिटी बात घसीटी जा रही है । कुछ तो हो..."।"
तभी मंत्री की दृष्टि सभा - द्वार पर पड़ी कि सामने राज-मार्ग पर एक क्षुल्लक मुनि ( छोटा साधु ) भिक्षा के लिए कहीं जा रहा है। मंत्री ने एक योग्य अधिकारी को भेजकर मुनि से राजसभा में आने का आग्रह किया।
क्षुल्लक मुनि अपनी मस्त चाल से चलता हुआ राजसभा में आया। राजा ने देखा कि बहुत छोटी आयु का साधु है, अभी तो जवानी भी पूरी नहीं फटी है। आँखों में से बच. पन झाँक रहा है । चेहरे पर बालसुलभ सहज निश्छलता है। भला, यह इन दिग्गज विद्वानों के सामने क्या समस्या पूर्ति करेगा ? किंतु तभी पर्वत-शृंग जैसे विशाल काय हाथियों के बीच छोटे से सिंह-शिशु के समान बाल-साधु को निर्भय और निर्द्वन्द्व खड़ा देखकर राजा अन्तर् में आश्वस्त भी हुआ, कि कुछ तो है, बिल्कुल खाली तो नहीं मालम होता ।
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