Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 74
________________ शान्ति के मंगल-सूल ११ सुदत्त नाम के एक महान तपस्वी एवं मनोज्ञानी साधु, भिक्षा के लिए घूमते-फिरते 'यक्ष' श्रावक के घर पहुंच गए। _ 'यक्ष' वसन्तपुर का तत्त्व - ज्ञानी श्रावक था। साधुओं की सेवा - भक्ति और धर्म - चर्चा में प्रमुख था वह । मुनि को घर पर आते देखा, तो बहुत प्रसन्न हुआ। आहार - दान के लिए घर में इधर - उधर देखा, परन्तु कोई भी शुद्ध वस्तु उसके ध्यान में नहीं आई । भोजन अभी बना नहीं था । आखिर एक कोने में घी का घड़ा भरा दिखाई दिया। बड़े ही भक्ति भाव पूर्वक मुनिवर से घी लेने की प्रार्थना की । मुनि ने पात्र रखा, और यक्ष ने बहुत ही उच्च भावों के साथ घी की धारा मुनि के पात्र में उडेलनी शुरू की। ___ मुनि मनोज्ञानी थे। एकाएक उनका ध्यान यक्ष की उच्च भावनाओं की ओर चला गया। ज्योंही भावनाओं के उत्क्रमण पर उनका ध्यान केन्द्रित हुआ, तो पात्र से ध्यान हट गया। घी से पात्र भर गया था, फिर भी मुनि का ध्यान नहीं लौटा, ताकि इन्कार करें। यक्ष भी तीव्रातितीव्र भावनाओं के साथ घी देता ही चला गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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