Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 93
________________ ८४ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ गई। सन से कुछ भगवान् की वाणी स्मरण हो आयी- "कषायानल को प्रशमित करो।" मुनि ने तुरन्त ही अपने क्रोध को शान्त किया। अब वे ज्यों ही उत्थान - श्रुत के उद्वेग निवारण करने वाले प्रशमनकारो अंश विशेष को पढ़ने लगे, तो धीरे-धीरे नगर में शान्ति हो गई। सभी लोग पूर्ववत् अपने कार्यों में जुट गए। ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं । दमसार ऋषि को अपने क्रोध पर पश्चात्ताप होने लगा। वे आहार ग्रहण किए बिना ही नगर से वापस लौट आए। प्रभु के समक्ष उपस्थित हुए, तो भगवान् ने कहा-'दमसार ! जो श्रमण क्रोध - कषाय में प्रवृत्त होता है, वह दीर्घ संसारी होता है, चिरकाल तक संसार-वन में भटकता है। और क्रोध को शान्त करने वाला अल्प संसारी होता है, शोघ्र ही मोक्षपद प्राप्त करता है । श्रमण धर्म का सार उपशम है, क्षमा है।" चात्ताप है दमसार ऋषि ने प्रभु के समक्ष अपने क्रोध का प्रायश्चित्त किया और दृढ़ संकल्प के साथ क्षमा तथा शान्ति की साधना में जुट गया। मन से कषाय-भाव का विलय हुआ, तो सातवें दिन ही उन्हें 'केवलज्ञान' प्राप्त हो गया। - आत्म प्रबोध, पत्र ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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