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जैन इतिहास की प्रेरक कथाएं विद्याध्ययन करते-करते कपिल यौवन के द्वार पर पहुंच गया । शालिभद्र के घर पर एक सुन्दर दासी थी। बड़ो नटखट और चंचल । कपिल की व्यवस्था उसी के जिम्मे थी। दोनों में परिचय बढ़ा, बढ़ते-बढ़ते परिचय प्रेम में बदल गया, और अन्दर-ही-अन्दर एक - दूसरे के स्नेह - पाश में आबद्ध हो गए। अब प्रेम की पढ़ाई शुरू हुई, तो गुरुकुल की पढ़ाई छूटने लग गई । आचार्य कपिल को बार - बार झिड़कते,-"आज कल पढ़ने में ध्यान नहीं है तुम्हारा ? क्यों, क्या बात है ? दिमाग कहाँ चक्कर काट रहा है ?" आचार्य की फटकार पर कपिल चुप हो जाता। धीरे - धीरे गुरुकुल में जाना भी छट गया। अब कपिल दासो के साथ उन्मुक्त भाव से प्रणय लीला में मस्त रहने लगा। वह यह भूल गया कि उसने माँ के आँसू पोंछने का वादा किया है। विद्वान् बनने के लिए ही तो श्रावस्ती आया है। वह अपने पिता के मित्र का अतिथि है । परन्तु, कपिल दासी के व्यामोह में, प्रेम में पूर्ण रूप से अंधा हो कर दिन-रात दासी के ही पीछे लगा रहता।
एक बार नगर में वन - महोत्सव की तैयारियां होने लगीं । उत्सब में नगर की तरुण नारियाँ नये - नये वस्त्राभूषण पहन कर वन - विहार के लिए जातीं और उन्मुक्त भ्रमण एवं क्रीड़ाएँ करतीं। दासी ने कपिल से कहा-"मुझे मूल्यवान रेशमी वस्त्र नहीं, तो कोई साधारण-सा नवीन
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