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अक्षय कोष मिल गया
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संसार में अनपढ़ की कोई इज्जत नहीं करता । सभी जगह विद्वान् की ही पूजा होती है।"
"अच्छा माँ, अब मैं अवश्य ही पढूगा-तुम अपने आँसू पोंछो । पिता के इसी पद पर एक दिन तुम्हारा लाड़ला बेटा बैठेगा माँ।"
___ कपिल के हृदय में अध्ययन की तीव्र भूख जग उठी। वह पढ़ाई में जुट गया। किन्तु, उसकी माँ 'यशा' जानती थी-"कौशाम्बी के विद्वानों में कितनी ईर्ष्या और डाह है। यहाँ के पंडित एक-दूसरे को देखकर जलते रहते हैं । कपिल को यहाँ कोई उच्च शिक्षा नहीं देगा । जानते हैं- राजपुरोहित काश्यप का पुत्र पढ़-लिख कर एक दिन राजपुरोहितपद का अपना परम्परागत अधिकार प्राप्त कर सकता है।
और तब राज-दरबार में उनकी दाल कैसे गलेगी ?" यह सोच कर यशा ने काश्यप के मित्र उपाध्याय 'इन्द्रदत्त' के पास कपिल को श्रावस्ती भेज दिया।
श्रावस्ती में उपाध्याय इन्द्रदत्त को कौन नहीं जानता? वह श्रावस्तो का बहुश्रुत और वृद्ध विद्वान् था। कपिल उनके पास पहुंचा । अपना परिचय दिया। उपाध्याय ने मित्र-पुत्र को अपने पुत्र की तरह समझा। श्रावस्ती के धनाढ्य सेठ शालिभद्र के घर कपिल के रहने और भोजन की व्यवस्था कर दी गई । कपिल निष्ठापूर्वक विद्याध्ययन में जुट गया।
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