Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 84
________________ अक्षय कोष मिल गया कपिल अपनी बात ठीक तरह कह भी नहीं पाया था कि पहरेदारों ने उसको पकड़ लिया- " बदमाश है, चोर है । रात को कोई भीख मांगने निकलता है ? दिन भिखारियों का, रात चोरों को झूठ बोलकर हमें बना रहा है ।" कपिल को पकड़ कर कारागार में ठूस दिया । वहाँ और भी कई शराबी और चोर भरे पड़े थे । गंदगी और बदबू के मारे उसका सिर फटा जा रहा था । माँ की छल-छलाई आँखें उसके सामने तैरने लगीं । कहीं भटक गया ? पढ़ने आया था - पिता के समान विद्वान् बनने के लिए | और यहाँ कहाँ प्रेम में फँस गया ? प्रेम के उन बीते मधुर क्षणों के साथ वह आज की इन कठोर यंत्रणाओं की तुलना करने लगा । अतीत का पूरा दृश्य, चित्र बनकर उसके सामने आ गया । भविष्य की अंधकार पूर्ण टेढ़ी-मेढ़ी काली रेखाएं जैसे उसकी आँखों की रोशनी में साफ दिखाई दे गईं । कपिल की यह रात आत्म-निरीक्षण और चिन्तन में बीती । Jain Education International ७५ व्यवस्था के अनुसार प्रातःकाल सूर्योदय होने पर रात्रि के निगृहीत अपराधी चोर उचक्कों, शराबी और व्यभिचारियों के साथ कपिल को भी राजा प्रसेनजित के समक्ष उपस्थित किया गया । राजा प्रसेनजित अपराधों की जाँच स्वयं करता था और अपराधी को कठोर शिक्षा देता था । कपिल थर-थर काँप रहा था । उसकी आँखें शर्माई हुई थीं, पश्चात्ताप के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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