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जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ
कपिल के निराशा-भरे हृदय में आशा की लहर दौड़ गई-"प्रातःकाल सबसे पहले सेठ को दिन के मंगलमय होने का आशीर्वाद दूंगा और दो मासा सोना ले आऊँगा।" इन्हीं विचारों में रात - भर उसे नींद नहीं आई। बार-बार चादर से मुह निकाल कर टिमटिमाते तारों की ओर देखता । अब रात कितनी बाकी है ? मेरे से पहले ही कोई पहुंच न जाए ! कपिल का मन अधीर हो रहा था। आतुरता धैर्य को तोड़ डालती है। प्रतीक्षा का एक पहर भी वर्ष जितना लम्बा लगता है । कपिल स्वर्ण-लाभ की प्रतीक्षा में आतुर हो रहा था। तारों के झिलमिल प्रकाश में उसे रात का कोई अन्दाज रहा नहीं। पागल की तरह घर से निकल गया। गलियों में ठोकरें खाता हुआ, इधर - उधर भटकता हुआ धनदत्त के घर की ओर वढ़ा जा रहा था।
"ऐ कौन है ? कहाँ जा रहा है ?- किसी की तोखी आवाज सुनकर कपिल वहीं ठिठक गया। यमदूत - सी दो भीमकाय काली छाया उसके पीछे-पीछे आ रहीं थीं। कपिल का हृदय धक-धक कर उठा।
"इतनी गहरी रात में कहाँ जा रहे हो ? चोरी करने?"
कपिल ने गिड़गिड़ाते हुए कहा--"चोरी नहीं । ब्राह्मण का बेटा हूँ। भिक्षा मांगने के लिए धनदत्त सेठ के घर पर.!"
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