Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 72
________________ दृढ़ प्रहारी : दृढ़ आचारी ६३ मन में तीव्रतम पश्चात्ताप होने लगा । भावना का प्रवाह बदल गया । क्रूर मनोवृति पश्चात्ताप की आग में तपकर करुणा और वैराग्य के रूप में निखर उठी । अपने नृशंस आचरण के प्रति इतनी ग्लानी हुई कि उसने तलवार दूर फेंक दी, वहीं पर उसने अपना डाकू और हत्यारे का वेश छोड़कर मुनि वेश धारण कर लिया। पवित्र मन से अपने पापों की आलोचना की और भविष्य में पाप न करने का संकल्प किया । वह अब पूर्व दिशा में दरवाजे के बाहर आकर ध्यानस्थ खड़ा हो गया । उसने संकल्प किया- " जब तक मन में इस पाप की स्मृति भी बनी रहेगी, तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा ।" -- कुसंस्कारों ने एक कुलीन वणिक् - पुत्र को क्रूर एवं निर्दय डाकू बना दिया । किन्तु जब अन्तर् के सुसंस्कार जगे, तो कुछ ही क्षणों में वह डाकू से साधु बन गया । प्रातः लोगों ने देखा - " दृढ़ - प्रहारी चोर साधु का वेश लिए ध्यानस्थ खड़ा है। किसी को भी विश्वास नहीं आया उसकी साधुता पर । भावनाओं के उतार-चढ़ाव की अथाह गहराई को साधारण दृष्टि पकड़ भी तो नहीं सकती । लोगों ने उसे गालियां दीं - " ढोंगी ! धूर्त, बदमाश !! चोरियाँ और हत्याएँ करके अब साधुता का ढोंग रचा है ?" किसी ने उस पर थूका, किनी ने ढेले फेंके, किसी ने लातों से मारा, तो किसी ने उसे लाठी और डंडों से पीटा भी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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