Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 73
________________ 4 जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ दृढ़-प्रहारी अब 'दृढ़-आचारी' बन गया था। वह एक महा-वृक्ष की तरह इन आँधियों में अडोल खड़ा रहा । मन में क्रोध की एक लहर भी न उठने दी । शान्ति और क्षमा का अजस्र-स्रोत बहता रहा। डेढ़ महीने तक पूर्व के द्वार पर तप करने के बाद मुनि दृढ़ - प्रहारी पश्चिम के दरवाजे पर जाकर डेढ़ महीने के लिए कायोत्सर्ग करके खड़े हो गए । इधर भी लोगों ने उसी प्रकार ताड़ना, तर्जना एवं यातना दी। मुनि धीरता से सबकुछ सहते रहे । तीसरी वार दक्षिण के दरवाजे पर फिर डेढ़ महीने का कायोत्सर्ग किया। वहाँ भी अपने धैर्य को कसौटी पर खरा उतरा देखकर मुनि ने उत्तर के द्वार पर आकर पुनः डेढ़ महीने का कायोत्सर्ग कर लिया। __ मुनि का मन क्षमा-प्रधान तप एवं ध्यान की आग में तपकर एकदम उज्ज्वल हो गया था। छह मास की कठोर साधना से हृदय में परम संवेग का अनन्त अक्षय स्रोत उमड़ पड़ा । जीवन भर के कलुष कलिमलों को धोकर आखिर में केवलज्ञान प्राप्त किया । सदा-सर्वदा के लिए मुक्त हो गए। मनुष्य का हृदय बदल जाता है, तो उसका समूचा जीवन ही बदल जाता है । और हृदय तब बदलता है-जब पाप के प्रति सच्ची घणा हो जाती है। - आत्मप्रबोध, पत्र ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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