Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 70
________________ दृढ़ प्रहारी : दृढ़ आचारी और निरंकुशता का शिकार रहा, वह अब जवानी में भला क्या सुधरता ? सेठ के सब प्रयत्न बेकार साबित हुए। आखिर निराश होकर एक दिन सेठ ने उसे मार - पीट कर अपने घर से बाहर निकाल दिया। दत्त को अब और अधिक आजादी मिल गई । वह चोर और लुटेरों की कुसंगति में पड़ गया, दुर्व्यसन में फंस गया और धीरे - धीरे बड़ा कर चोर बन गया । बचपन से ही समाज के प्रति उसके मन में घणा के बीज अंकुरित हुए थे, अब वे पल्लवित हो गए । दृढ़-प्रहारी एक हत्यारे दस्युराज के रूप में प्रसिद्ध हो गया। उसके हाथ में हर समय नंगी तलवार लपलपाती रहती थी। वह और उसका एक मात्र साथी तलवार । जब भी कहीं कोई संघर्ष होता, तब उसका फैसला वह तलवार करती। दृढ़-प्रहारी का आतंक दूर - दूर तक फैल गया। एक बार वह किसी ब्राह्मण के घर में चोरी करने के लिए घुसा। द्वार पर ब्राह्मण की गाय खड़ी थी, उसने अनजाने आदमी को घर में घुसते देखा, तो सींगों से मारने लिए सामने दौड़ी। दृढ़-प्रहारी ने गाय की गर्दन पर तलवार का एक ही ऐसा वार किया कि खून से लथपथ गाय, दो टुकड़े होकर भूमि पर गिर पड़ी। गाय गिरी तो, धमाके की आवाज से ब्राह्मण की नींद टूट गई, उसने चोर को घर में घुसा देखा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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