Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ धर्म का सार - " राजन् ! मैंने दो गोले इस दीवार पर चिपकाये, एक गीला और दूसरा सूखा । गीला गोला दीवार से चिपक कर लगा रहा और सूखा गोला टकराकर नीचे गिर पड़ा । इसी प्रकार मनोवृत्तियों में जब तक राग-द्वेष का गीलापन रहता है, आसक्ति रहती है, तब तक कर्मरूपी गोले आत्मारूप दीवार पर लगते ही रहते हैं और मन की मलिनता बढ़ती ही जाती है । किन्तु, जो विरक्त और अनासक्त हैं, उनकी आत्मा पर कर्म - मलरूप गोले नहीं लगते । यही धर्म का सार है ।" धर्म का सार सुनकर राजा ने श्रद्धावनत होकर मुनि के चरणों में नमस्कार किया । Jain Education International २७ - आचारांग नियुक्ति २२७-२३३ - आचारांग चूर्णि १/४(१ — आख्यानक मणिकोष २८ /६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94