Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 50
________________ दीप से दीप जले ____ क्षुल्लक कुमार' एक राजकुमार था। संस्कार - वश बाल्य-काल में ही वह अपनी माता साध्वी यशोभद्रा के पास दीक्षा लेकर ज्ञानार्जन में जुट गया। जब वह युवक हुआ, तो हृदय में संसार के सुखोपभोग की तरंग उठ खड़ी हुई। दबाने पर भी यह तरंग जब दब न सकी, तब एक दिन वह अपनी माँ से, मुनिवेश छोड़ कर पुनः संसार में जाने की अनुमति मांगने लगा। ___ माँ ने बहुत समझाया, पर पुत्र का मन नहीं बदला। आखिर मोह का दबाव डालकर माँ ने कहा-"पुत्र ! कमसे-कम बारह वर्ष तक तू मेरे पास और रहकर अध्ययन कर ले । फिर जैसा तेरा मन हो, वैसा करना।" माँ की ममता ने पुत्र को बारह वर्ष के लिए और बांध लिया। प्रतिदिन वैराग्य और ज्ञान की बातें सुनते हुए भी उसके भोगाकुल मन पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। किसी तरह बारह वर्ष पूरे हुए, उसने माता से पुनः घर जाने की अनुमति मांगी। स्नेह के कारण माँ की आँखें भींग गई । उसने कहा"पुत्र ! मेरी गुरुनी (महत्तरा आर्यिका) के पास जाकर तुम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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