Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 53
________________ ४४ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ यह क्या, खेती पकने के समय किसान सो रहा है ? नृत्य का पारिश्रमिक मिलने का समय आया, तो नर्तकी शिथिल होकर झपकियाँ लेने लग रही है । स्वर लड़खड़ाने लग गए हैं। उसने गीत का आलाप भरते हुए नर्तकी को सावधान किया- . "सुठु गाइयं, सुठ्ठ वाइयं, सुट्ठ नच्चियं सामसुन्दरी ! अणुपालिय दीहराइयं, उसुमिणं ते मा पमायए !" "सुन्दरी ! तूने लम्बे समय तक सुन्दर गाया, सुन्दर बजाया, और सुन्दर नृत्य किया। अब थोड़े से समय के लिए प्रमाद न कर ! यही तो फल मिलने का समय है।" क्षुल्लक मुनि एक किनारे खड़ा अभिनय देख रहा था। ज्योंही यह गाथा सुनी, सहसा उसकी तन्मयता टूट गई । उसे एक झटका - सा लगा। गाथा के अर्थ पर चिन्तन करने लगा, तो उसकी अन्तर्-निद्रा खुल गई । तुरन्त, उसने अपने कंधे पर का रत्न कम्बल वृद्ध नर्तकी को दे डाला। उधर राजकुमार ने यह गाथा सुनते ही अपने मणिजटित कुण्डल उतार कर नर्तकी की झोली में डाल दिए। तभी एक ओर खड़ी कोई कुल - वधू अपने गले का रत्नहार उतार कर नर्तकी के हाथ में थमा गई। इधर राज - मंत्री ने भी उसी क्षण अपनी हीरे की अँगूठी निकाली और नर्तकी के सामने रख दी। मुनि, राजकुमार, कुल-वध और मंत्री को एक गाथा . पर इस प्रकार धन बरसाते देखकर वृद्ध राजा को बड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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