Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 59
________________ ५० जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ समीर बह रही थी। अनेक तरह के रंग - बिरंगे पक्षी अपने रैन-बसेरों से पंक्तिबद्ध उड़े जा रहे थे, दूर कहीं दाना-पानी की तलाश में । अति सुखद एवं सुहावना दृश्य था । थावच्चा पुत्र आनन्द - विभोर हुआ यह सब देख रहा था। कभी इधर, तो कभी उधर, महल की छत पर दौड़ा-दौड़ा घूम रहा था। • इसी बीच पड़ोस के घर से आती मंगल गीतों की मधुर ध्वनि उसके कानों को छू गई। गीतों की मधुरता और मोहकता ने थावच्चा पुत्र को सहसा अपनी ओर खींच लिया। वह इधर - उधर देखना भूल गया और एक तान होकर श्रवण - पुटों से मानो मधुरस पीने लगा । गीतों की पृष्ठ-भूमि एवं भावना वह ठीक तरह नहीं समझ पा रहा था। पर, उसका जिज्ञासु मन एक के बाद एक उठते प्रश्नों से भरने लगा-ये गीत क्या हैं ? क्यों गाये जा रहे हैं ? बालक का गुरु माँ होती है । थावच्चा पुत्र नीचे उतरा और जल्दी से माँ के पास आया। प्रेम से मचलते हुए माँ का आँचल खींचकर गोदी में बैठ गया- "माँ ! पड़ोस में ये सुन्दर और मीठे गीत किसलिए गाए जा रहे हैं ?" ... -"बेटा ! अपनी वह पड़ोसिन है न ! उसकी गोद आज भर गई । उसके पुत्र हुआ है। पुत्र - जन्म की खुशी में ही ये गीत गाये जा रहे हैं।" .. --"माँ ! क्या मेरे जन्म के समय भी ऐसे ही गीत गाये गए थे ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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