Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 62
________________ आखिर, प्रश्न समाधान पा गया ५३ होना चाहिए, ऐसी कोई साधना होनी चाहिए कि मनुष्य कभी मरे नहीं। वह अमर हो जाए।" थावच्चा पुत्र बड़ा हुआ। एक बार भगवान् अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी में पधारे। थावच्चा पुत्र भी अपनी माता के साथ उपदेश सुनने को गया। प्रभु का उपदेश सुनते ही उसका हृदय प्रबुद्ध हो गया। उसकी बाल्य काल से चली आ रही जिज्ञासा को आज पूर्ण होने का मार्ग मिल गया। मृत्यु को जीतने की साधना उसे प्राप्त हो गई। वह माता की आज्ञा लेकर भगवान् अरिष्टनेमी के चरणों में दीक्षित हो गया। साधना के कठोर मार्ग पर अविचल धैर्य के साथ बढ़ा, तो ऐसा बढ़ा कि सदा के लिए जन्म-मरण की परम्परा का नाश कर अजर-अमर बन गया। उसने मृत्यु को जीत लिया। बचपन का उठा प्रश्न सदा-सर्वदा के लिए समाधान पा गया। -थावच्चा पुत्र-रास (मुनि श्री जीवराजजी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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