Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 49
________________ ४० जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ विचारों की इस उच्च भूमि पर चढ़ता हुआ कूरगडुक मुनि धर्मध्यान से शुक्ल - ध्यान में अग्रसर हो गया, वह आत्म - दर्शन करने लगा। उसके क्रोध और अहंकार आदि कषायभाव क्षीण हो गए, आसक्ति के बन्धन टूट गए। आत्मा में परम शान्ति और शीतलता की वे निर्मल भाव लहरें उठी कि केवलज्ञान के दिव्य प्रकाश से लोकालोक आलोकित हो उठा । आकाश में देव-दुन्दुभियाँ बजने लगीं। करगडुक केवली को जय - जयकार करते हुए देवताओं के अनेकानेक वृन्द धरती पर उतर आए और कूरगडुक मुनि के चरण-कमलों में नमस्कार करने लगे। बड़े - बड़े तपस्वी, जिन्हें अपने तप का अहंकार था, कूरगडुक मुनि को केवली हुआ देखकर चकित हो उठे । वे श्रद्धावनत उसके पास आकर अपने कटु वचन, अपमान एवं अभद्र व्यवहार के लिए बार - बार क्षमा मांगने लगे। उन्हें अब समझते देर नहीं लगी कि वास्तव में तप क्या है ? सच्चा तप बाहर में नहीं, अन्दर मैं है । और वह है-क्रोधविजय में, क्षमाशीलता में, सहिष्णुता में। --उपदेशप्रसाद स्तंभ ३/४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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