Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 40
________________ वय क्रोध को पी गया ३१ रहेंगे । वैर की परम्परा कितनी पीढ़ियों तक चलती जाएगी । कितनी माताओं की गोद सूनी होती रहेंगी? कितनी सुहागिनों का सुहाग लुटता रहेगा ? वैर का बदला वैर से नहीं लिया जा सकता। 'हत्या का बदला हत्या'-यह क्रम तो कभी समाप्त ही न हो सकेगा। वैर का सच्चा समाधान तो क्षमा ही हो सकता है।" ___ मातृत्व के प्रबुद्ध संस्कारों ने क्षत्रियाणी के हृदय को जीत लिया। उसने हाथ ऊँचा उठाया-"बेटा, रुक आओ! तलवार वापस म्यान में करो। घर पर आया हुआ शत्रु अवध्य होता है । फिर यह तो शरण माँग रहा है, प्राणों की भीख मांग रहा है । शरणागत को मारना, क्षत्रिय का धर्म नहीं है। अतः इसे छोड़ दो !" मां की बात सुनकर कुलपुत्र सहसा भोंचक रह गया। "माँ, क्या कह रही हो ? जिस हत्यारे को पकड़ने के लिए बारह-बारह वर्ष तक जंगलों की खाक छानता रहा, तब कहीं बड़ी कठिनता से वह हाथ में आया । और, इस प्रकार आज उसके बदला लेने का अवसर आया, तब तुम कहती हो'छोड़ दो।' नहीं, माँ ! नहीं ! यह नहीं हो सकता। हर्गिज नहीं हो सकता। मेरे मन की आग तब तक शान्त नहीं होगी, जब तक कि मैं इसका खून नहीं पी जाऊँ, मुझे रोको मत ।" "बेटा ! क्रोध, कभी क्रोध से शान्त हुआ है ? खून से खून के दाग धूले हैं कभी ? क्रोध को सफल करना वीरता नहीं है । वीरता है-शत्रु को क्षमा करना, क्रोध को पी जाना ॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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