Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 39
________________ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ पाश में बाँध लिया। शत्रु को बन्दी बनाकर मां के सामने ला पटका-"माँ, यह लो मेरी तलवार और अपने पुत्र का बदला लो।" कुलपुत्र ने तलवार माँ की ओर बढ़ा दी। माँ ने गर्व से चमकती आँखों से पुत्र की ओर देखा और कहा-"बेटा ! अपने भाई का बदला तू ही ले ।"कुलपुत्र की तलवार चमचमा उठी। हत्यारा बलि के बकरे की तरह थर - थर काँप रहा था। कुलपुत्र के चरणों में बार-बार गिर कर मेमने की तरह मिमिया रहा था, आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। गिड़गिड़ाकर प्राणों की भीख मांगने लगा- "मुझे जीवित छोड़ दो, जीवन भर तुम्हारा दास बना रहूँगा। मेरे बिना मेरी बूढ़ी माँ, युवा पत्नी और नन्हे-नन्हे बच्चे असहाय हो जाएंगे, बिलख -बिलख कर मर जाएँगे। क्षमा कर दो कुलपुत्र ! मुझे प्राणों की भीख दे दो।" कुलपुत्र का क्रोधान्ध हृदय हत्यारे की दोन - दशा को महज नाटक समझ रहा था। उसने गिड़- गिड़ाते शत्रु को एक ठोकर मारी-"दुष्ट, अब माँ और बच्चों की फिक्र लगी है।" किन्तु, सामने खड़ी माँ, यह देख रही थी, उसका मातृत्व जाग उठा-"उसकी बूढ़ी माँ ऐसे ही तड़पेगी, जैसे कि मैं अपने पुत्र के लिए तड़पती हूँ । इसके बच्चे फिर अपने पितृ घातक शत्रु से बदला लेने के लिए ऐसे ही निकलेंगे, जैसे मेरा पुत्र निकला है । एक - दूसरे के प्राणों के ग्राहक बने फिरते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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