Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 37
________________ वह क्रोध को पी गया एक क्षत्रिय कुलपुत्र के भाई की हत्या करके हत्यारा लापता हो गया। भाई की मृत्यु पर कुलपुत्र का कलेजा टूकटक हो गया। आँखें बरसने लग गई। सिर पकड़ कर वह शोकमग्न मुद्रा में शून्य आकाश की ओर पागल की तरह ताकने लगा, इधर-उधर देखने लगा। तभी वीर क्षत्रियाणी का सुप्त क्षत्रियत्व जगा । बूढ़ी माँ ने शोकाकुल पुत्र को ललकारा-- "सिर पीटना, रोना और शोक करना, कायरों का काम है । क्षत्रिय वह होता है, जो अपने शत्र से बदला ले । बेटा ! तूने मेरा दूध पिया है, क्षत्रिय का रक्त तेरी नसों में दौड़ रहा है । उठ ! अपने हाथ में खडग सँभाल, और भाई के हत्यारे के खून से उसकी प्यास बुझा।" कुलपुत्र की शोक से रोती आँखें क्रोध से लाल अंगारे की तरह दहक उठीं। वीरता के दर्द से भुजाएँ फड़कने लगीं। उसने म्यान से तलवार बाहर खींच ली और उसे हवा में नचाने लगा। . क्षत्रियाणी माता ने उसके पौरुष को और अधिक उद्दीप्त किया-"बेटा ! सच्चा क्षत्रिय तो वह है, जो शत्रु को आक्रमण Jain Education International For Private & Personal www.jainelibrary.org

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