Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 45
________________ क्षमा का आराधक "गुरुदेव ! मैंने संयम-व्रत तो स्वीकार कर लिया है, किन्तु कर्मोदय के कारण भूख सहन करने की शक्ति मुझ में नहीं है, एक उपवास भो नहीं कर सकता। प्रभो ! बिना तपः साधना के कैसे मेरा कल्याण होगा?" विशाला नगरी का एक नवदीक्षित राजकुमार गुरु-चरणों में आकर प्रार्थना करने लगा। __गुरु ने शिष्य को आश्वस्त करते हुए कहा- "वत्स ! तुम भूख नहीं सह सकते, तो कोई बात नहीं । तपस्या के अन्य रूप भी हैं, मात्र अनशन-तप के रूप में भूखा रहना ही एक मात्र तप नहीं है। संतोष, सेवा, स्वाध्याय, ध्यान, क्षमा-ये भी तप हैं । तुम और कुछ नहीं, तो एक क्षमा की ही परिपूर्ण साधना करो, उसी साधना से तुम अन्य सब तपस्याओं का फल प्राप्त कर सकते हो।" ____ गुरु के आदेश के अनुसार मुनि क्षमा की साधना में जुट गया । क्रोध एवं द्वष के प्रत्येक प्रसंग पर अपने को संभाल कर चलने लगा। और, इस प्रकार क्षमा का अभ्यास करते - करते उसकी उग्र रजोगुणी मनोवृत्ति अत्यन्त शान्त एवं शीतल हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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