Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 26
________________ १७ तीन गाथाएं आत्म-साधना का है। निरर्थक ही मैं भटक गया। इतना बड़ा पापाचार ! पिता की हत्या ! और वह भी ऋषि की।" राजकुमार के विचारों में एकदम परिवर्तन आ गया। वह मुनि के सामने आकर चरणों में गिर पड़ा, और रोने लगा। __ मुनि ने अचानक ही अंधेरी रात में राजकुमार को अकेला आया देखा, तो विस्मय में डब गए। पर हाथ में नंगी तलवार और फूट-फूट कर रोना- उसके आने का अभिप्राय स्पष्ट बता रहे थे । मुनि ने उसे आश्वस्त किया । राजकुमार ने अपना दुष्ट उद्देश्य बताते हुए मुनि से क्षमा मांगी। मुनि सन्न रह गए । एक पुत्र राज्य-लोभ से पिता की हत्या, नहीं, एक ऋषि की हत्या करने को भी तैयार हो सकता है ? सिर्फ बहकाव और सत्ता का लालच ! मुनि ने राजकुमार को सान्त्वना दी । वे तो सहज क्षमामूर्ति थे, वहाँ क्रोध और घृणा का काम ही क्या ? राजकुमार महल में लौट आया। मंत्री के प्रति उसका मन आशंकाओं से भर गया। मंत्री की मीठी बातों में उसे कपट का जहर छलछलाता दिखाई दिया। प्रातः होते-होते राजा ने मंत्री के घर को घेर कर तलाशी लेने का आदेश दे दिया। चारों ओर सशस्त्र सैनिक तैनात कर दिए। मंत्री और उसका परिवार सेना के पहरे में था। राजकुमार स्वयं मंत्री के भूमि-गृहों की तलाशी लेने निकला। एक भूमि - गृह में राजकुमारी अणुल्लिया मुरझाई हुई चंपकलता-सी उदासीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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