Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 29
________________ ___ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएं की चेष्टा होती है, तो वह 'वाद' वाद नहीं, 'विवाद' होता है। कौन भला आदमी उसमें भाग लेकर, व्यर्थ का झगड़ा मोल ले । वहाँ तो चुप रहना ही अच्छा है।" । "तो, फिर तत्त्व की जानकारी कैसे हो सकती है? चर्चा करने से ही तो सत्य और असत्य का भेद खुलता है।" मंत्री ने गम्भीरता-पूर्वक उत्तर में कहा-"महाराज ! तत्त्व की जानकारी के लिए कभी एक धर्म-सभा का आयोजन करें। जिसमें सभी धर्मों के विद्वान् आएँ और अपनेअपने विचार प्रस्तुत करें । तत्त्व-चर्चा, अधिकारी विद्वानों के साथ होनी चाहिए, साधारण जनता के साथ नहीं।" ___मंत्री की सूझ - बूझ पर राजा को भरोसा था । उसने सहर्ष स्वीकृति दी और निर्धारित समय पर एक विशाल धर्म - सभा के आयोजन का कार्य प्रारम्भ हो गया। नगर में धर्म - सभा की उद्घोषणा करवा दी गई। और, साथ ही आनेवाले विद्वानों को एक समस्यापूर्ति करके लाने का निवेदन भी किया गया । समस्या मंत्री ने रखी __ 'सकुण्डलं वा वयणं न वत्ति ।' समस्या की सर्वोत्तम पूर्ति पर इच्छित दान एवं 'राजगुरु' का सम्मानित पद देने की घोषणा भी की गई। निश्चित दिन पर राज - सभा में बड़े-बड़े विद्वानों का जमघट लग गया। परिव्राजक, तापस, त्रिदंडी, शैव, शाक्त, बौद्ध आदि बड़े-बड़े धर्म-गुरु अपने-अपने शिष्यों के दल-बल के साथ राज-सभा में उपस्थित हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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