Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 30
________________ धम धर्म का सार राज-दरबार एक - से - एक सुन्दर भित्ति - चित्रों एवं विविध कला पूर्ण दृश्यों, मालाओं आदि से सुसज्जित था। प्रत्येक धर्म-गुरु के लिए अपना - अपना स्वतन्त्र आसन लगा हुआ था । राजा सबके सामने एक रत्न-जटित मयूर-सिंहासन पर आसीन था। एक ओर महामंत्री रोहगुप्त अपने आसन पर धीर - गम्भीर मुद्रा में बैठे सभा के कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। राज-सभा का विशाल भवन दर्शकों एवं श्रोताओं से खचाखच भरा था। सभी की आँखों में आज एक नयी उत्सुकता थी। सभा का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। मंत्री के संकेत पर सर्वप्रथम एक अधेड़ उम्र के धर्म-गुरु उठे और खखारते हुए उन्होंने समस्या-पूर्ति का अपना श्लोक पढ़ा"भिक्ख पविठेण मएऽज्ज दिठ्ठ, पमयामुहं कमलविसालनेत्तं । वक्खित्तचित्तेण न सुठ्ठ नायं, सकुडलं वा वयणं न वत्ति ॥" -"आज भिक्षा के निमित्त मैंने एक घर में प्रवेश किया। वहाँ पर कमल-जैसी विशाल आँखों वाली एक सुन्दरी का मुख दिखाई पड़ा, तो मेरा चित्त विक्षिप्त हो उठा । उसके रूप को निहारते-निहारते मैं यह जान ही न पाया कि उसका मुख कुंडलों की झिलमिलाती ज्योति से शोभित है या नहीं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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